जिसे कर्म के फल से कोई मोह नहीं है, शरीर को मिलने वाले सुखों-दुखों का बंधन नहीं है, जिसका मन ज्ञान की स्थित में है और जिसका हर कर्म यज्ञ की तरह है। उसका हर काम ऐसा होता है, जो उसे अपने साथ बांधता नहीं।
किसी ने संत से पूछा, 'भगवान को कैसे पाएं?' संत ने जवाब दिया: संसार से मन हटाकर भगवान में लगाना शुरू कर दो, प्रभु खुद ब खुद मिल जाएंगे। देखा जाए तो सारा ज्ञान यहीं पर आकर इकट्ठा हो जाता है। हमारे अंदर मैं, मेरा और मेरे वालों को लेकर बहुत लगाव है। जब तक मन संसार में उलझा रहेगा, तब तक अपने भीतर झांकना मुश्किल है। इंसान को चीजों और लोगों से लगाव की आदत से खुद को हटाना चाहिए, लेकिन ये आसक्ति का भाव मन को संसार से हटने नहीं देता और उम्र भर उलझाए रखता है। अगर अपने लोगों और अपनी चीजों से मन हट भी जाए, तो अपना शरीर और घमंड तो अंदर पड़ा ही रहता है।
हम अच्छी तरह से जान लें कि अहंकार एक ऐसी उपजाऊ जमीन है, जिस पर हर तरह की बुराई पनपती है। इसलिए काम-वासना से आजाद होकर अपने मन को हमेशा प्रभु को जानने में लगाए रखो। जब मन हर पल प्रभु को पाने के ज्ञान और उसके ध्यान में लगा रहेगा, तब बाहर के सभी बंधन खुद ब खुद ढीले पड़ते जाएंगे। जिसे दुनियादारी से लगाव और मन में घमंड न हो, ऐसे इंसान के द्वारा किया गया हर काम यज्ञ की तरह हो जाता है। उसके काम करने का कारण अपना हित न होकर दूसरों और पूरे संसार का हित होता है। यह एक ऐसी अवस्था है, जिसमें इंसान कर्मों के बंधन से ऊपर उठ कर कर्मों के बंधन में बंधने से बच जाता है।
हम अच्छी तरह से जान लें कि अहंकार एक ऐसी उपजाऊ जमीन है, जिस पर हर तरह की बुराई पनपती है। इसलिए काम-वासना से आजाद होकर अपने मन को हमेशा प्रभु को जानने में लगाए रखो। जब मन हर पल प्रभु को पाने के ज्ञान और उसके ध्यान में लगा रहेगा, तब बाहर के सभी बंधन खुद ब खुद ढीले पड़ते जाएंगे। जिसे दुनियादारी से लगाव और मन में घमंड न हो, ऐसे इंसान के द्वारा किया गया हर काम यज्ञ की तरह हो जाता है। उसके काम करने का कारण अपना हित न होकर दूसरों और पूरे संसार का हित होता है। यह एक ऐसी अवस्था है, जिसमें इंसान कर्मों के बंधन से ऊपर उठ कर कर्मों के बंधन में बंधने से बच जाता है।
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