उज्जैन भारत के मध्य प्रदेश राज्य का एक प्रमुख धार्मिक शहर है जो क्षिप्रा नदी के किनारे बसा है। उज्जैन बहुत ही पुराना शहर है। यह विक्रमादित्य के राज्य की राजधानी थी। इसे कालिदास की नगरी के नाम से भी जाना जाता है। यहां हर 12 साल में सिंहस्थ कुंभ मेला लगता है। भगवान शिव के 12 ज्योतिर्लिंगों में एक महाकाल इस नगरी में स्थित है । उज्जैन के प्राचिन नाम अवन्तिका, उज्जयनी, कनकश्रन्गा आदि है। उज्जैन मन्दिरो की नगरी है। यहा कई तीर्थ स्थल है।
Wednesday 26 August 2015
Friday 21 August 2015
''नागचंद्रेश्वर मंदिर''
ஜ۩ॐ۩ஜ "जय श्री महाकाल" ஜ۩ॐ۩ஜ
''नागचंद्रेश्वर मंदिर''......एक अद्भुत मंदिर जो वर्ष में सिर्फ ''नागपंचमी'' के ही दिन २४ घंटे के लिए खुलता है''...
मध्य प्रदेश की धार्मिक श्री महाकाल की नगरी उज्जैन में एक दुर्लभ मंदिर है; ‘’नागचन्द्रेश्वर मंदिर’’।
श्री महाकालेश्वर मंदिर शिखर के तीसरे तल पर ११वी शताब्दी की परमारकालीन प्रतिमा नाग के आसन पर स्थित शिव पार्वती की सुन्दर प्रतिमा है। छत्र के रूप में नाग का फन फैला हुआ है।
दिनांक १९/०८/२०१४ को नागपंचमी के शुभ पर्व पर वर्ष में एक बार खुलने वाले भगवान् श्री महाकालेश्वर के दुसरे तल पर स्थित श्री नागचंद्रेश्वर महादेव मंदिर के पट दिनांक १८/०८/२०१५ को रात्रि १२:०० बजे खुलेंगे तथा पूजन पश्चात दर्शनार्थी दर्शन कर सकेंगे। यह पट दिनांक १९/०८/२०१४ को रात्रि १२:०० बजे तक खुले रहेंगे।
किन्तु दिनांक १९/०८/२०१४ को रात्री १०:३० बजे तक श्री नागचंद्रेश्वर के दर्शन हेतु मंदिर परिसर में प्रवेश पा सकेंगे।
नागपंचमी के शुभ पर्व पर भगवान् नागचंद्रेश्वर की त्रिकाल पूजा होगी....
प्रथम पूजा दिनांक १९/०८/२०१४ को रात्रि १२:०० बजे महंत, कलेक्टर, समिति अध्यक्ष द्वारा होगी।
द्वितीय पूजा दिनांक १९/०८/२०१४ को शासकीय पूजा अपरान्ह १२:०० बजे होगी।
तृतीय पूजा दिनांक १९/०८/२०१४ को श्री महाकालेश्वर प्रबंध समिति द्वारा रात्रि ०८:०० बजे होगी।
प्रथम पूजा दिनांक १९/०८/२०१४ को रात्रि १२:०० बजे महंत, कलेक्टर, समिति अध्यक्ष द्वारा होगी।
द्वितीय पूजा दिनांक १९/०८/२०१४ को शासकीय पूजा अपरान्ह १२:०० बजे होगी।
तृतीय पूजा दिनांक १९/०८/२०१४ को श्री महाकालेश्वर प्रबंध समिति द्वारा रात्रि ०८:०० बजे होगी।
नागपंचमी के दिन इस प्रतिमा के दर्शन के बाद ही भक्तजन नाचंद्रेश्वर महादेव के दर्शन वर्ष में एक बार ही करते हैं।
इसका पट साल में केवल एक दिन खुलता अर्थात श्रावण शुक्ल पंचमी यानि की नाग पंचमी के दिन ही खुलते हैं।
इसका पट साल में केवल एक दिन खुलता अर्थात श्रावण शुक्ल पंचमी यानि की नाग पंचमी के दिन ही खुलते हैं।
प्राचीनकाल से शिव की नगरी के रुप में पहचाने जाने वाले उज्जैन में विशाल परिसर में स्थित, यह मंदिर तीन खंडो में विभक्त है। सबसे नीचे खंड में भगवान महाकालेश्वर, दूसरे खंड में ओकारेश्वर और तीसरे खंड में दुर्लभ भगवान नागचंद्रेश्वर का मंदिर है।
नागचंद्रेश्वर मंदिर में प्रतिमा के आसन में शिव-पार्वती की सुन्दर प्रतिमा स्थित है जिसमें छत्र के रुप में नाग का फन फैला हुआ है। नागपंचमी के दिन इस प्रतिमा के दर्शन के बाद ही भक्तजन नागचंद्रेश्वर महादेव के दर्शन करते है।
यह प्रतिमा पड़ोसी देश नेपाल से यहां लायी गयी तथा यहां पर श्रीलक्ष्मी माता एवं शंकर पार्वती की नंदी पर विराजित प्रतिमा भी लायी गयी जो मंदिर के दूसरे तल पर स्थित है। नागचंद्रेश्वर के साथ इनका भी पूजन नागपंचमी के दिन किया जाता है।
इस मंदिर की सर्वप्रथम पूजा महानिर्वाणी अखाड़े के संतों द्वारा और इसके बाद दोपहर में शासकीय और रात में महाकालेश्वर मंदिर प्रबंध समिति की तरफ से पूजा की जाती है।
लगभग 60 फीट ऊंचाई वाले इस मंदिर में पहुचने के लियें प्राचीन में इसका रास्ता संकरा और अंधेरा वाला होने से एक समय में एक ही व्यक्ति चढ़ सकता था, लेकिन दो दशक से अधिक समय पूर्व मंदिर में दर्शनार्थियो की बढती संख्या को देखते हुए मंदिर प्रबंध समिति और जिला प्रशासन ने लोहे की सीढियां का रास्ता अलग से बना दिया है।
हिंदू मान्यताओं के अनुसार सर्प भगवान शिव का कंठाहार और भगवान विष्णु का आसन है लेकिन यह विश्व का संभवत:एकमात्र ऐसा मंदिर है जहां भगवान शिव, माता पार्वती एवं उनके पुत्र गणेशजीको सर्प सिंहासन पर आसीन दर्शाया गया है। इस मंदिर के दर्शनों के लिए नागपंचमी के दिन सुबह से ही लोगों की लम्बी कतारे लग जाती है|
यह देश का अकेला ऐसा नाग मंदिर है, जिसके पट नागपंचमी के दिन 24 घंटे के लिए खुलते हैं। मान्यता है कि इस मंदिर मे दर्शन व पूजा-अर्चना करने से तमाम कष्टों से मुक्ति मिल जाती है।
भगवान भोलेनाथ को अर्पित फूल व बिल्वपत्र को लांघने से मनुष्य को दोष लगता है। कहते हैं कि; भगवान नागचंद्रेश्वर के दर्शन करने से यह दोष मिट जाता है| महाकाल की नगरी में देवता भी अछूते नहीं रहे, वह भी इस दोष से बचने के लिए नागचंद्रेश्वर का दर्शन करते हैं, ऐसा धर्मग्रंथों में उल्लेख है।
भगवान नागचंद्रेश्वर को नारियल अर्पित करने की परंपरा है। पंचक्रोशी यात्री भी नारियल की भेंट चढ़ाकर भगवान से बल प्राप्त करते हैं और यात्रा पूरी होने पर मिट्टी के अश्व अर्पित कर उनका बल लौटाते हैं।
मान्यता है कि सर्पो के राजा तक्षक ने भगवान भोलेनाथ की यहां घनघोर तपस्या की थी। तपस्या से भगवान शिव प्रसन्न हुए और तक्षक को अमरत्व का वरदान दिया। ऐसा माना जाता है कि उसके बाद से तक्षक नाग यहां विराजित है, जिस पर शिव और उनका परिवार आसीन है। एकादशमुखी नाग सिंहासन पर बैठे भगवान शिव के हाथ-पांव और गले में सर्प लिपटे हुए है।
मान्यता है कि नागचंद्रेश्वर मंदिर में नागपंचमी के दिन विशेषपूजा करने से कालसर्प योग से मुक्ति मिलती है।
HAR HAR MAHADEV
-Deepak Parashar
FB/JSM
-Deepak Parashar
FB/JSM
''नागचंद्रेश्वर मंदिर''......एक अद्भुत मंदिर जो वर्ष में सिर्फ ''नागपंचमी'' के ही दिन २४ घंटे के लिए खुलता है''.
ल में सिर्फ 24 घंटे के लिए खुलता है प्राचीन व दुर्लभ नागचंद्रेश्वर महादेव मंदिर, 1.5 लाख भक्तों ने किए दर्शन
नागपंचमी महापर्व के अवसर पर देश व दुनियाभर में प्रसिद्ध उज्जैन के ज्योतिर्लिंग महाकालेश्वर मंदिर के शिखर पर स्थित प्राचीन व दुर्लभ नागचंद्रेश्वर महादेव मंदिर के पट मंगलवार की मध्य रात 12.30 बजे खोले गए। यह मंदिर हर साल नागपंचमी के मौके पर सिर्फ एक दिन (24 घंटे) के लिए खोला जाता है।परंपरा अनुसार पंचायती महानिर्वाणी अखाड़े के महंत प्रकाशपुरी महाराज, अवधेश पुरी महाराज, कलेक्टर कवींद्र कियावत ने मंदिर में प्रथम पूजा की।
Friday 14 August 2015
Tuesday 11 August 2015
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