Friday 24 April 2015

केदारनाथ यात्राः क्‍या आप जानते हैं धाम का यह रहस्य?

द्वादश ज्योतिर्लिगों में से एक है केदारनाथ
आस्‍था का प्रतिक केदारनाथ धाम अपने आप में चमत्कार है। जून 2013 की आपदा में सबकुछ नष्ट हो गया है। लेकिन मंदिर को नुकसान तक नहीं पहुंचा।

इस मंदिर के इतिहास में कुछ ऐसे रहस्य छिपे हैं जिन्हें बहुत कम लोग जानते हैं। केदारनाथ मंदिर के कपाट खुलने पर आज अमर उजाला आपकों इन रहस्यों से रूबरू करवा रहा है। इतना ही नहीं काठमांडू के पशुपतिनाथ और केदारनाथ का आपस गहरा संबंध है।

श्री केदारनाथ द्वादश ज्योतिर्लिगों में से एक माना जाता है। यह ज्योतिर्लिंग त्रिकोण आकार का है और इसकी स्थापना के बारे में कहा जाता है कि हिमालय के केदार श्रृंग पर भगवान विष्णु के अवतार महातपस्वी नर और नारायण ऋषि तपस्या करते थे।

उनकी आराधना से प्रसन्न होकर भगवान शंकर प्रकट हुए और उनके प्रार्थनानुसार ज्योतिर्लिंग के रूप में सदा वास करने का वर प्रदान किया। यह स्थल केदारनाथ पर्वतराज हिमालय के केदार नामक श्रृंग पर अवस्थित हैं।

केदारनाथ मंदिर के बारे में एक कथा यह भी है कि महाभारत के युद्ध में विजयी होने पर पांडव हत्या के पाप से मुक्ति पाना चाहते थे। इसके लिए वे भगवान शंकर का आशीर्वाद पाना चाहते थे, लेकिन भगवान शिव पांडवों से नाराज थे।

भगवान शंकर के दर्शन के लिए पांडव काशी गए, पर वे उन्हें वहां नहीं मिले। वे लोग उन्हें खोजते हुए हिमालय तक आ पहुंचे। भगवान शंकर पांडवों को दर्शन नहीं देना चाहते थे, इसलिए वे वहां से अंतध्र्यान हो कर केदार में जा बसे। दूसरी ओर, पांडव भी लगन के पक्के थे, वे उनका पीछा करते-करते केदार पहुंच ही गए।
पशुपतिनाथ और केदारनाथ का आपस में है संबंध
भगवान शंकर ने तब तक बैल का रूप धारण कर लिया और वे अन्य पशुओं में जा मिले। पांडवों को संदेह हो गया था। अत: भीम ने अपना विशाल रूप धारण कर दो पहाडों पर पैर फैला दिया।

अन्य सब गाय-बैल तो निकल गए, पर शंकर जी रूपी बैल पैर के नीचे से जाने को तैयार नहीं हुए। भीम बलपूर्वक इस बैल पर झपटे, लेकिन बैल भूमि में अंर्तध्यान होने लगा। तब भीम ने बैल कापीठ का भाग पकड़ लिया।

भगवान शंकर पांडवों की भक्ति, दृढ संकल्प देख कर प्रसन्न हो गए। उन्होंने तत्काल दर्शन देकर पांडवों को पाप मुक्त कर दिया। उसी समय से भगवान शंकर बैल की पीठ की आकृति-पिंड के रूप में श्री केदारनाथ में पूजे जाते हैं।

ऐसा माना जाता है कि जब भगवान शंकर बैल के रूप में अंतर्ध्यान हुए, तो उनके धड़ से ऊपर का भाग काठमाण्डू में प्रकट हुआ। अब वहां पशुपतिनाथ का प्रसिद्ध मंदिर है। शिव की भुजाएं तुंगनाथ में, मुख रुद्रनाथ में, नाभि मदमदेश्वर में और जटा कल्पेश्वर में प्रकट हुए।

इसलिए इन चार स्थानों सहित श्री केदारनाथ को पंचकेदार कहा जाता है। यहां शिवजी के भव्य मंदिर बने हुए हैं।
ऐसे होती है भगवान केदार की पूजा
यह मन्दिर एक छह फीट ऊंचे चौकोर चबूतरे पर बना हुआ है। मन्दिर में मुख्य भाग मंडप और गर्भगृह के चारों ओर प्रदक्षिणा पथ है। बाहर प्रांगण में नंदी बैल वाहन के रूप में विराजमान हैं। मन्दिर का निर्माण किसने कराया, इसका कोई प्रामाणिक उल्लेख नहीं मिलता है, लेकिन ऐसा कहा जाता है कि इसकी स्थापना आदि गुरु शंकराचार्य ने की थी।

मन्दिर की पूजा श्री केदारनाथ द्वादश ज्योतिर्लिगों में से एक माना जाता है। प्रात:काल में शिव-पिण्ड को प्राकृतिक रूप से स्नान कराकर उस पर घी-लेपन किया जाता है। तत्पश्चात धूप-दीप जलाकर आरती उतारी जाती है।

इस समय यात्री-गण मंदिर में प्रवेश कर पूजन कर सकते हैं, लेकिन संध्या के समय भगवान का श्रृंगार किया जाता है। उन्हें विविध प्रकार से सजाया जाता है। भक्तगण दूर से केवल इसका दर्शन ही कर सकते हैं। केदारनाथ के पुजारी मैसूर के जंगम ब्राह्मण ही होते हैं।

केदारनाथ की बड़ी महिमा है। उत्तराखण्ड में बद्रीनाथ और केदारनाथ-ये दो प्रधान तीर्थ हैं, दोनो के दर्शनों का बड़ा महत्व है। कहा जाता है कि जो व्यक्ति केदारनाथ के दर्शन किये बिना बद्रीनाथ की यात्रा करता है, उसकी यात्रा निष्फल जाती है और केदारनापथ सहित नर-नारायण-मूर्ति के दर्शन का फल समस्त पापों के नाश पूर्वक जीवन मुक्ति की प्राप्ति बतलाया गया है।

Thursday 9 April 2015

यज्ञ की तरह करें हर काम


जिसे कर्म के फल से कोई मोह नहीं है, शरीर को मिलने वाले सुखों-दुखों का बंधन नहीं है, जिसका मन ज्ञान की स्थित में है और जिसका हर कर्म यज्ञ की तरह है। उसका हर काम ऐसा होता है, जो उसे अपने साथ बांधता नहीं।
किसी ने संत से पूछा, 'भगवान को कैसे पाएं?' संत ने जवाब दिया: संसार से मन हटाकर भगवान में लगाना शुरू कर दो, प्रभु खुद ब खुद मिल जाएंगे। देखा जाए तो सारा ज्ञान यहीं पर आकर इकट्ठा हो जाता है। हमारे अंदर मैं, मेरा और मेरे वालों को लेकर बहुत लगाव है। जब तक मन संसार में उलझा रहेगा, तब तक अपने भीतर झांकना मुश्किल है। इंसान को चीजों और लोगों से लगाव की आदत से खुद को हटाना चाहिए, लेकिन ये आसक्ति का भाव मन को संसार से हटने नहीं देता और उम्र भर उलझाए रखता है। अगर अपने लोगों और अपनी चीजों से मन हट भी जाए, तो अपना शरीर और घमंड तो अंदर पड़ा ही रहता है।

हम अच्छी तरह से जान लें कि अहंकार एक ऐसी उपजाऊ जमीन है, जिस पर हर तरह की बुराई पनपती है। इसलिए काम-वासना से आजाद होकर अपने मन को हमेशा प्रभु को जानने में लगाए रखो। जब मन हर पल प्रभु को पाने के ज्ञान और उसके ध्यान में लगा रहेगा, तब बाहर के सभी बंधन खुद ब खुद ढीले पड़ते जाएंगे। जिसे दुनियादारी से लगाव और मन में घमंड न हो, ऐसे इंसान के द्वारा किया गया हर काम यज्ञ की तरह हो जाता है। उसके काम करने का कारण अपना हित न होकर दूसरों और पूरे संसार का हित होता है। यह एक ऐसी अवस्था है, जिसमें इंसान कर्मों के बंधन से ऊपर उठ कर कर्मों के बंधन में बंधने से बच जाता है।

कब और कहां-कहां होता है कुंभ मेले का आयोजन

कुम्भ पर्व विश्व मे किसी भी धार्मिक प्रयोजन हेतु भक्तों का सबसे बड़ा संग्रहण है. सैंकड़ों की संख्या में लोग इस पावन पर्व में उपस्थित होते हैं. कुम्भ का संस्कृत अर्थ है कलश, ज्योतिष शास्त्र में कुम्भ राशि का भी यही चिह्न है.
हिन्दू धर्म में कुम्भ का पर्व हर 12 वर्ष के अंतराल पर चारों में से किसी एक पवित्र नदी के तट पर मनाया जाता हैः हरिद्वार में गंगा, उज्जैन में शिप्रा, नासिक में गोदावरी और इलाहाबाद में संगम जहां गंगा, यमुना और सरस्वती मिलती हैं.
इलाहाबाद का कुम्भ पर्व
ज्योतिषशास्त्रियों के अनुसार जब बृहस्पति कुम्भ राशि में और सूर्य मेष राशि में प्रवेश करता है, तब कुम्भ मेले का आयोजन किया जाता है. प्रयाग का कुम्भ मेला सभी मेलों में सर्वाधिक महत्व रखता है.
 
हरिद्वार के कुम्भ पर्व
हरिद्वार हिमालय पर्वत श्रृंखला के शिवालिक पर्वत के नीचे स्थित है. प्राचीन ग्रंथों में हरिद्वार को तपोवन, मायापुरी, गंगाद्वार और मोक्षद्वार आदि नामों से भी जाना जाता है. हरिद्वार की धार्मिक महत्तान विशाल है. यह हिन्दुओं के लिए एक प्रमुख तीर्थस्थान है. मेले की तिथि की गणना करने के लिए सूर्य, चन्द्र और बृहस्पति की स्थिति की आवश्यकता होती है. हरिद्वार का सम्बन्ध मेष राशि से है.
नासिक का कुम्भ पर्व
भारत में 12 में से एक जोतिर्लिंग त्र्यम्बकेश्वर नामक पवित्र शहर में स्थित है. यह स्थान नासिक से 38 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है और गोदावरी नदी का उद्गम भी यहीं से हुआ. 12 वर्षों में एक बार सिंहस्थ कुम्भ मेला नासिक एवं त्रयम्बकेश्वर में आयोजित होता है.
ऐतिहासिक प्रमाणों के अनुसार नासिक उन चार स्थानों में से एक है, जहां अमृत कलश से अमृत की कुछ बूंदें गिरी थीं. कुम्भ मेले में सैंकड़ों श्रद्धालु गोदावरी के पावन जल में नहा कर अपनी आत्मा की शुद्धि एवं मोक्ष के लिए प्रार्थना करते हैं. यहां पर शिवरात्रि का त्यौहार भी बहुत धूम धाम से मनाया जाता है.
उज्जैन का कुम्भ पर्व
उज्जैन का अर्थ है विजय की नगरी और यह मध्य प्रदेश की पश्चिमी सीमा पर स्थित है. इंदौर से इसकी दूरी लगभग 55 किलोमीटर है. यह शिप्रा नदी के तट पर बसा है. उज्जैन भारत के पवित्र एवं धार्मिक स्थलों में से एक है. ज्योतिष शास्त्र के अनुसार शून्य अंश (डिग्री) उज्जैन से शुरू होता है. महाभारत के अरण्य पर्व के अनुसार उज्जैन 7 पवित्र मोक्ष पुरी या सप्त पुरी में से एक है.
उज्जैन के अतिरिक्त शेष हैं अयोध्या, मथुरा, हरिद्वार, काशी, कांचीपुरम और द्वारका. कहते हैं की भगवन शिव नें त्रिपुरा राक्षस का वध उज्जैन में ही किया था.

आस्था एवं संस्कृति का विराट संगम: सिंहस्थ कुंभ

कुंभ पौराणिक काल से चली आ रही विशिष्ट भारतीय परम्परा है जो कश्मीर से कन्याकुमारी तक के श्रद्धालुओं संतों साधकों एवं सम्प्रदायाचार्यों को स्वत: खींच लाता है। गंगा-गोदावरी का जल स्वयं में अमृत है। सूर्य एवं चन्द्र की किरणों का प्रभाव कुंभीय गृहों के संयोग से यह अमृत-तुल्य हो जाता है। कुंभ वस्तुत: ज्ञान और वैराग्य का प्रतीक है। ज्योतिष गणना के अनुसार चार स्थानों पर कुंभ का आयोजन होता है। कुंभ पर्व वर्ष के अंतराल में क्रमश: हरिद्वार प्रयाग नासिक एवं उज्जैन में प्रत्येक स्थान पर 12 वर्षों के बाद आता है। बृहस्पति एवं सूर्य के सिंह राशि में प्रविष्ट होने पर नासिक में गोदावरी तट पर कुंभ पर्व का आयोजन होता है। यह सिंहस्थ कुंभ कहलाता है। एक और ज्योतिष विकल्प है-बृहस्पति सूर्य एवं चन्द्र जब कर्क राशि में प्रविष्ट होते हैं और अमावस्या का दिन हो तो भी गोदावरी के तट पर कुंभ पर्व होता है। इस वर्ष 27 अगस्त को यही योग है। 
प्रयाग ज्ञान अर्थात प्रकाश की दिशा है। यहां सूर्य (ज्ञान) का उदय होता है। नासिक दक्षिण दिशा का प्रतीक है। यह यम की दिशा है और तीक्ष्ण प्रकाश से युक्त है। यहां ज्ञान विस्तार को प्राप्त होता है। उज्जैन पश्चिम दिशा का प्रतिनिधित्व करता है। यहां ज्ञान का अस्त अर्थात ज्ञान आत्मसात होता है। हरिद्वार उत्तर दिशा हिमालय के समीप तपोभूमि का प्रतीक है। यहां ज्ञान अदृश्य अर्थात समाधिस्थ होता है। 
सामान्यत: कुंभ का अर्थ घड़ा होता है परंतु इसका तात्विक अर्थ कुछ और ही है। घड़े के अर्थ में भी यह लोकजीवन के मांगलिक कार्यों का पर्याय बन गया है। हिंदू संस्कृति में कोई भी मांगलिक कार्य बिना कलश के संभव नहीं होता और यह कलश घड़ा अर्थात कुंभ का प्रतीक है। कलश के मुख में विष्णु कंठ में रुद्र मूल में ब्रह्मा मध्य में मातृगण ,अंतस्थल में समस्त सागर पृथ्वी में निहित सप्तद्वीप चारों वेदों का समन्वयात्मक स्वरूप विद्यमान है। कुंभ सदा-सर्वदा से पूज्य रहा है। इसे पाप-पुण्य एवं लोकजीवन में मंगल की कामना से जोड़ा गया है। 
कुंभ के अनेक पर्याय हैं। कुंभ का अर्थ है-घट शरीर पेट कुंभ समुद्र पृथ्वी सूर्य एवं विष्णु। घट समुद्र नदी ,सरोवर कूप आदि सभी कुंभ के प्रतीक हैं। कुंभ हमारी समस्त संस्कृतियों का संगम है कुंभ एक आध्यात्मिक चेतना है। पवित्र नदियां मानव जीवन की समरसता की प्रतीक हैं एवं मानव शरीर में प्रवाहित होने वाले जल तत्व का बोध कराती हैं। शरीररूपी घर में पंचतत्व के बिना कुछ भी संभव नहीं है। अग्नि वायु जल पृथ्वी एवं आकाश तत्व यही शरीररूपी घट है। इसी को निर्गुणोपासक संत कबीर ने फूटा कुंभ जल जलहिं समाना कहकर स्पष्ट किया है। 
कुंभ में समस्त तीर्थ देव एवं समस्त भूत समाहित हैं। कुंभ शब्द का संबंध पौराणिक आख्यानों के आधार पर पर देव-दानव संवाद से स्थापित किया गया है। किंतु लौकिक जीवन में यदि कुंभ को उत्तर एवं दक्षिण भारत का सेतु कहा जाए तो कोई अतिश्योक्ति नहीं होगी। कुंभ पर्व दक्षिण भारत में कुभ कोणम के नाम से लोकप्रिय है। प्रयाग में माघ मेले की ही भांति प्रतिवर्ष सामान्य मखम् उत्सव तथा 12 वर्षों में महामखम् उत्सव मनाया जाता है। जिसमें पूरे देशभर से लोग आते हैं। लाखों लोग यहां महामखम् तालाब में स्नान करते हैं और दक्षिण भारत का कुंभ पर्व मानते हैं। कुंभ कोणम का संस्कृत नाम कुंभ घोणम् है। पुराणों में कथा आती है कि ब्रह्माजी ने अमृत भरकर एक कुंभ रखा था उस कुंभ की नासिका (कोण) अर्थात मुख के समीप एक छिद्र में से अमृत रिसकर बाहर निकल गया और उससे वहां की कोस तक की जमीन भीग गई। 
कुंभ से संबंधित अमृत-मंथन की कथा जनमानस में अधिक लोकप्रिय है। देवासुर संग्राम की यह कथा देवी एवं आसुरी शक्ति के परस्पर द्वन्द्व का प्रतीक है। देव-दानवों द्वारा परस्पर सहयोग से किए गए सागर-मंथन से 14 रत्न निकले। सारे रत्न देवताओं ने आपस में बांट लिए। अंत में भगवान धन्वन्तरि अमृत-कुंभ लेकर प्रकट हुए। दोनों ओर खींचतान मच गई। भगवान विष्णु ने इस संकट को टालने के लिए स्वयं मोहिनी रूप धारण किया और इंद्रपुत्र जयंत को अमृत कलश सौंपा। उसकी रक्षा का भार उन्होंने सूर्य चन्द्र एवं बृहस्पति को दिया। सूर्य ने कलश को फूटने से बचाया चन्द्र ने अमृत को छलकने से एवं बृहस्पति ने उसे भूमि पर गिरने से बचाया। जयंत द्वारा अमृत कलश लेकर भागने के क्रम में हरिद्वार प्रयाग नासिक एवं उज्जैन में अमृत कलश को रखने से अमृत की बूंदे छलकने के कारण ये स्थल मुख्य तीर्थ बन गए। इन स्थानों पर सूर्य चन्द्र एवं बृहस्पति तथा कुंभ मेष एवं सिंह राशियां कुंभ पर्व का द्योतक बन गईं और गृहों की सहभागिता के कारण कुंभ पर्व ज्योतिष पर्व बन गया। जयंत को अमृत कलश स्वर्ग ले जाने में 12 दिन का समय लगा था। देवों का एक दिन मनुष्य के एक वर्ष के बराबर होता हे। यही कारण है कि ग्रहीय स्थिति के क्रम में कुंभ पर्व 12 वर्ष बाद लगता है। यह पर्व ही मेले का पर्याय है।

सिंहस्थ कुंभ के कार्यों से उज्जैन शहर की तस्वीर भी बदले


मुख्य सचिव श्री आर. परशुराम ने आज मंत्रालय में उज्जैन के सिहंस्थ-कुंभ 2016 के आयोजन की पूर्व तैयारियों और निर्माणाधीन कार्यों की एक बैठक में समीक्षा की। बैठक में लगभग 100 करोड़ रुपए के 18 नए कार्यो को मंजूरी प्रदान की गई। ये कार्य नगर निगम उज्जैन, लोक स्वास्थ्य यांत्रिकी, लोक निर्माण विभाग और मध्यप्रदेश पश्चिम क्षेत्र विद्युत वितरण कंपनी द्वारा किए जाएंगे।
आज स्वीकृत प्रमुख कार्यों में सात सरोवरों का विकास (रुद्र सागर छोड़कर) सिहंस्थ कुंभ मेला पड़ाव क्षेत्र पहुँच मार्ग, उज्जैन शहरी क्षेत्र में चौड़े किए गए मार्गों पर सेन्ट्रल लाइटिंग हरिफाटक ब्रिज जंक्शन के चौड़ीकरण, लाल पुल के पास रेलवे ओव्हर ब्रिज, मंगलनाथ मंदिर और सिद्धनाथ मंदिर के मध्य क्षिप्रा नदी पर पुल, गऊघाट पर स्थापित 12 एमजीडी प्लांट का सिविल और इलेक्ट्रिकल कार्य, अम्बोदिया प्लांट पर मैकेनिकल कार्य, भेरुगढ़ में 132/33 केवी विद्युत उप केंद्र शामिल हैं।
मुख्य सचिव ने बैठक में अधिकारियों को निर्माणाधीन कार्यों की पूर्णता यथासमय सुनिश्चित करने के निर्देश दिए। मुख्य सचिव ने कहा कि सिंहस्थ कुंभ के लिए किए जाने वाले कार्यों का स्थायी लाभ लिए जाने पर भी ध्यान दिया जाए। नए निर्माण कार्यों से उज्जैन शहर का स्वरूप भी अपेक्षाकृत आधुनिक बनना चाहिए। मुख्य सचिव ने चल रहे कार्यों की विभागवार जानकारी प्राप्त की।
पंचक्रोशी यात्रा मार्ग बने सुविधाजनक
मुख्य सचिव ने निर्देश दिए कि पंचक्रोशी क्षेत्र में विभिन्न पड़ाव स्थलों पर जरुरी सुविधाएँ विकसित की जाये। मार्ग में ऐसे पौधे लगाए जो छायादार वृक्ष बनें और उनका लाभ यात्रियों को मिल सके। पंचक्रोशी क्षेत्र के पड़ाव स्थल पर चार उच्च-स्तरीय टंकियाँ निर्मित की जा रही हैं। इसके अलावा पाईप लाइन एवं ड्रेनेज व्यवस्था भी की जाएगी। इन कार्यों पर 9 करोड़ रुपए से अधिक राशि खर्च होगी। उल्लेखनीय है कि पंचक्रोशी यात्रा कुंभ के साथ ही प्रति वर्ष भी होती है।
क्षिप्रा-अवंतिका होटल उन्नयन कार्य
बैठक में बताया गया कि पर्यटन विकास निगम की ओर से 10 करोड़ रुपए की लागत से क्षिप्रा एवं अवंतिका होटल के उन्नयन कार्य प्रस्तावित हैं। इसी तरह एक बजट होटल का निर्माण भी किया जा रहा है।
वॉच टावर
बैठक में जानकारी दी गई कि सिंहस्थ मेला प्राधिकरण द्वारा सिंहस्थ मेला टावर के लिए भू-अर्जन की कार्यवाही की जा रही है। कंट्रोल रूम-सह-वॉच टावर और मेला कार्यालय के निर्माण की मंजूरी आवास एवं पर्यावरण विभाग द्वारा दी गई है।
रेलवे ओवर ब्रिज और पुल
लोक निर्माण विभाग उज्जैन में जीरो प्वाइंट मक्सी मार्ग के पास रेलवे ओवर ब्रिज बनाएगा। इसी तरह मुक्तेश्वर पर क्षिप्रा पार के लिए पुल, नृसिंहघाट के पास पुल और बड़े पुल के पास क्षिप्रा सेतु के समांतर (चक्र तीर्थ के पास) अतिरिक्त पुल का निर्माण किया जाएगा। बैठक में मक्सी मार्ग से आगर मार्ग को जोड़ने वाले लिंक मार्ग पर रेलवे ब्रिज के संबंध में भी चर्चा हुई।
पुलिस कर्मियों के लिए बैरक और कंट्रोल रूम
गृह निर्माण मंडल और पुलिस हाउसिंग एजेंसी द्वारा पुलिस कंट्रोल रूम और पुलिस कर्मियों के ठहरने के लिए बैरकों के निर्माण पर 19 करोड़ रुपए की राशि खर्च होगी।
स्वास्थ्य सुविधाएँ
बैठक में बताया गया कि उज्जैन में 200 बिस्तर के नए अस्पताल ब्लाक के निर्माण और जीवाजीगंज अस्पताल के उन्नयन पर 15 करोड़ की राशि खर्च की जाएगी।
खान नदी डायवर्शन
जल संसाधन विभाग द्वारा खान नदी के डायवर्शन का कार्य हाथ में लिया जाएगा। खान नदी के प्रदूषित पानी को पवित्र क्षिप्रा नदी में मिलने से रोकने के लिए ग्राम पंथ पिपलई के पास बैराज बनाकर वर्षा काल के बाद का पानी रोका जाएगा एवं खान नदी के बाएं तट पर 29 कि.मी. लम्बी पक्की नहर बनाई जाएगी। इससे नैसर्गिक पानी प्रवाह मंगलनाथ के नीचे क्षिप्रा नदी में छोड़ा जाना संभव होगा। इस परियोजना के लिए 70 करोड़ 36 लाख की योजना प्रस्तुत की गई है।
घाटों का निर्माण और मंदिर परिसरों का विस्तार
कुंभ के दौरान श्रद्धालुओं की सुविधा के लिए घाटों के निर्माण और मंदिर परिसरों के विस्तार के कार्य हाथ में लिए गए हैं। लगभग पाँच करोड़ रुपए की लागत से कबीर घाट का निर्माण पूरा हो चुका है। जल संसाधन विभाग द्वारा सेवरखड़ी जलाशय और सोमतीर्थ कुण्ड विकास कार्य को आने वाले वर्ष में पूरा किया जाएगा। सवा दो सौ करोड़ के कुल बीस कार्य संचालित हैं। उज्जैन नगर निगम द्वारा 100 करोड़ रुपए लागत के दस कार्य किए जा रहे हैं। इसमें प्रमुख रुप से हरसिद्धी मंदिर से नृसिंह घाट होते हुए लाल पुल तक सीमेंट रोड, चामुण्डा माता से नई सड़क तक रोड और सिंहस्थ पड़ाव स्थल के विकास के कार्य शामिल हैं। कुंभ क्षेत्र का मास्टर प्लान बनाने की कार्यवाही भी की जा रही है।
बैठक में बताया गया कि उज्जैन में मध्यप्रदेश पश्चिम क्षेत्र विद्युत वितरण कंपनी द्वारा 725 करोड़ रुपए के 10 कार्य पूर्ण किए जा चुके हैं। सड़क विकास निगम ने 200 करोड़ के चार सड़क निर्माण कार्य की पहल की है। इनमें उज्जैन पश्चिम बायपास रिंग रोड टू लेन, उज्जैन-मक्सी मार्ग, उज्जैन-बदनावर मार्ग और उज्जैन-झालावाड़ मार्गर् शामिल हैं।

सिंहस्थ कुंभ के लिए 2812 करोड़ रुपए की परियोजना मंजूर करने का आग्रह


मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने केन्द्रीय योजना आयोग से उज्जैन में वर्ष 2016 में होने वाले सिंहस्थ कुंभ के लिए 2812 करोड़ रुपए की परियोजना मंजूर करने का आग्रह किया है।
योजना आयोग उपाध्यक्ष मोंटेक सिंह अहलूवालिया को लिखे एक पत्र में मुख्यमंत्री ने बताया है कि सिंहस्थ-2016 में चार से पांच करोड़ श्रद्धालुओं के शामिल होने की आशा है। इस धार्मिक आयोजन में देश और विदेश से भी लोग शिरकत करते हैं।
उन्होंने कहा कि सिंहस्थ के लिए उज्जैन नगर निगम ने एक ‘मास्टर प्लान’ बनाया है, जिसके अनुसार राज्य सरकार के संबंधित विभाग कार्य करेंगे। इस मास्टर प्लान में नगर विकास योजना के लिए चिह्नित योजनाएं शामिल हैं, जिन्हें भारत सरकार की केन्द्रीय मंजूरी एवं निगरानी समिति का अनुमोदन प्राप्त हो चुका है।
चौहान ने अहलूवालिया को बताया है कि बड़े स्तर के इस महत्वपूर्ण कार्य को पूरा करने में लगने वाले अनुमानित समय को विचार में रखते हुए राज्य सरकार ने 731 करोड़ रुपए की मंजूरी दे दी है और काम भी शुरू हो गया है। योजना आयोग ने पहले भी उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड और महाराष्ट्र को कुंभ मेलों के लिए वित्तीय सहायता दी है।
मुख्यमंत्री ने याद दिलाया कि उन्होंने (चौहान) इस साल मई में राज्य की वार्षिक आयोजना को अंतिम रूप देने के लिए हुई बैठक में भी सिंहस्थ-2016 के लिए उनसे अनुदान मंजूर करने का आग्रह किया था।

Thursday 2 April 2015

श्री हनुमान चालीसा अर्थ सहित


��मांयवर , हम सब हनुमान चालीसा पढते हैं सब रटा रटाया | कया हमे चालीसा पढते समय पता भी होता है कि हम हनुमानजी से कया कह रहे हैं या कया मांग रहे हैं ?

बस रटा रटाया बोलते जाते हैं | आनंद और फल शायद तभी मिलेगा जब हमें इसका मतलब भी पता हो |

तो लीजिए पेश है श्री हनुमान चालीसा अर्थ सहित !!

��श्री गुरु चरण सरोज रज,निज मन मुकुरु सुधारि।
बरनऊँ रघुवर बिमल जसु,जो दायकु फल चारि।

��《अर्थ》→ शरीर गुरु महाराज के चरण
कमलों की धूलि से अपने मन रुपी दर्पण को पवित्र
करके श्री रघुवीर के निर्मल यश का वर्णन
करता हूँ,जो चारों फल धर्म,अर्थ,काम और मोक्ष
को देने वाला हे।★
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बुद्धिहीन तनु जानिके,सुमिरो पवन-कुमार।
बल बुद्धि विद्या देहु मोहिं,हरहु कलेश विकार।★
��《अर्थ》→ हे पवन कुमार! मैं आपको सुमिरन
करता हूँ। आप तो जानते ही हैं,कि मेरा शरीर और
बुद्धि निर्बल है।मुझे शारीरिक बल,सदबुद्धि एवं
ज्ञान दीजिए और मेरे दुःखों व दोषों का नाश कार
दीजिए।★
जय हनुमान ज्ञान गुण सागर,जय कपीस तिहुँ लोक
उजागर॥1॥★
��《अर्थ 》→ श्री हनुमान जी!आपकी जय हो।
आपका ज्ञान और गुण अथाह है। हे कपीश्वर!
आपकी जय हो!तीनों लोकों,स्वर्ग लोक,भूलोक और
पाताल लोक में आपकी कीर्ति है।★
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राम दूत अतुलित बलधामा, अंजनी पुत्र पवन सुत नामा॥
2॥★
��《अर्थ》→ हे पवनसुत अंजनी नंदन!आपके समान
दूसरा बलवान नही है।★
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महावीर विक्रम बजरंगी, कुमति निवार सुमति के संगी॥3॥

��《अर्थ》→ हे महावीर बजरंग बली!आप विशेष पराक्रम
वाले है। आप खराब बुद्धि को दूर करते है,और
अच्छी बुद्धि वालो के साथी,सहायक है।★
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कंचन बरन बिराज सुबेसा ,कानन कुण्डल कुंचित केसा॥
4॥★
��《अर्थ》→ आप सुनहले रंग,सुन्दर
वस्त्रों,कानों में कुण्डल और घुंघराले बालों से
सुशोभित हैं।★
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हाथ ब्रज और ध्वजा विराजे,काँधे मूँज जनेऊ साजै॥
5॥★
��《अर्थ》→ आपके हाथ मे बज्र और ध्वजा है और
कन्धे पर मूंज के जनेऊ की शोभा है।★
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शंकर सुवन केसरी नंदन,तेज प्रताप महा जग वंदन॥6॥★
��《अर्थ 》→ हे शंकर के अवतार!हे केसरी नंदन आपके
पराक्रम और महान यश की संसार भर मे
वन्दना होती है।★
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विद्यावान गुणी अति चातुर,रान काज करिबे को आतुर॥
7॥★
��《अर्थ 》→ आप प्रकान्ड विद्या निधान है,गुणवान
और अत्यन्त कार्य कुशल होकर श्री राम काज करने
के लिए आतुर रहते है।★
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प्रभु चरित्र सुनिबे को रसिया, राम लखन सीता मन
बसिया॥8॥★
��《अर्थ 》→ आप श्री राम चरित सुनने मे आनन्द रस
लेते है।श्री राम,सीताऔर लखन आपके हृदय मे बसे
रहते है।★
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सूक्ष्म रुप धरि सियहिं दिखावा,बिकट रुप धरि लंक
जरावा॥9॥★
��《अर्थ》→ आपने अपना बहुत छोटा रुप धारण करके
सीता जी को दिखलाया और भयंकर रूप करके
लंका को जलाया।★
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भीम रुप धरि असुर संहारे,रामचन्द्र के काज संवारे॥
10॥★
��《अर्थ 》→ आपने विकराल रुप धारण करके
राक्षसों को मारा और श्री रामचन्द्र जी के
उदेश्यों को सफल कराया।★
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लाय सजीवन लखन जियाये,श्री रघुवीर हरषि उर लाये॥11॥

��《अर्थ 》→ आपने संजीवनी बुटी लाकर लक्ष्मण
जी को जिलाया जिससे श्री रघुवीर ने हर्षित होकर
आपको हृदय से लगा लिया।★
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रघुपति कीन्हीं बहुत बड़ाई,तुम मम प्रिय भरत सम भाई॥
12॥★
��《अर्थ 》→ श्री रामचन्द्र ने आपकी बहुत
प्रशंसा कीऔर कहा की तुम मेरे भरत जैसे प्यारे
भाई हो।★
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सहस बदन तुम्हरो जस गावैं,अस कहि श्री पति कंठ
लगावैं॥13॥★
��《अर्थ 》→ श्री राम ने आपको यह कहकर हृदय से
लगा लिया की तुम्हारा यश हजार मुख से सराहनीय है।★
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सनकादिक ब्रह्मादि मुनीसा, नारद,सारद सहित अहीसा॥
14॥★
��《अर्थ》→
श्री सनक,श्री सनातन,श्री सनन्दन,श्री सनत्कुमार
आदि मुनि ब्रह्मा आदि देवता नारद
जी,सरस्वती जी,शेषनाग जी सब आपका गुण गान करते
है।★
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जम कुबेर दिगपाल जहाँ ते,कबि कोबिद कहि सके
कहाँ ते॥15॥★
��《अर्थ 》→ यमराज,कुबेर आदि सब दिशाओं के
रक्षक,कवि विद्वान,पंडित या कोई भी आपके यश
का पूर्णतः वर्णन नहीं कर सकते।★
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तुम उपकार सुग्रीवहि कीन्हा,राम मिलाय राजपद
दीन्हा॥16॥★
��《अर्थ 》→ आपनें सुग्रीव जी को श्रीराम से
मिलाकर उपकार किया ,जिसके कारण वे राजा बने।★
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तुम्हरो मंत्र विभीषण माना,लंकेस्वर भए सब जग
जाना॥17॥★
��《अर्थ 》→ आपके उपदेश का विभिषण जी ने पालन
किया जिससे वे लंका के राजा बने,इसको सब संसार
जानता है।★
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जुग सहस्त्र जोजन पर भानू,लील्यो ताहि मधुर फल
जानू॥18॥★
��《अर्थ 》→ जो सूर्य इतने योजन दूरी पर है की उस पर
पहुँचने के लिए हजार युग लगे।दो हजार योजन
की दूरी पर स्थित सूर्य को आपने एक मीठा फल समझकर
निगल लिया।★
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प्रभु मुद्रिका मेलि मुख माहि,जलधि लांघि गये अचरज
नाहीं॥19॥★
��《अर्थ 》→ आपने श्री रामचन्द्र
जी की अंगूठी मुँह मे रखकर समुद्र को लांघ
लिया,इसमें कोई आश्चर्य नही है।★
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दुर्गम काज जगत के जेते,सुगम अनुग्रह तुम्हरे
तेते॥20॥★
��《अर्थ 》→ संसार मे जितने भी कठिन से कठिन काम
हो,वो आपकी कृपा से सहज हो जाते है।★
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राम दुआरे तुम रखवारे,होत न आज्ञा बिनु पैसा रे ॥
21॥★
��《अर्थ 》→ श्री रामचन्द्र जी के द्वार के आप
रखवाले है,जिसमे आपकी आज्ञा बिना किसी को प्रवेश
नही मिलता अर्थात आपकी प्रसन्नता के बिना राम
कृपा दुर्लभ है।★
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सब सुख लहै तुम्हारी सरना,तुम रक्षक काहू
को डरना ॥22॥★
��《अर्थ 》→ जो भी आपकी शरण मे आते है,उस
सभी को आन्नद प्राप्त होता है,और जब आप रक्षक
है,तो फिर किसी का डर नही रहता।★
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आपन तेज सम्हारो आपै,तीनों लोक हाँक ते काँपै॥
23॥★
��《अर्थ 》→ आपके सिवाय आपके वेग को कोई नही रोक
सकता,आपकी गर्जना से तीनों लोक काँप जाते है।★
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भूत पिशाच निकट नहिं आवै,महावीर जब नाम सुनावै॥24॥

��《अर्थ 》→ जहाँ महावीर हनुमान जी का नाम
सुनाया जाता है,वहाँ भूत,पिशाच पास भी नही फटक
सकते।★
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नासै रोग हरै सब पीरा,जपत निरंतर हनुमत बीरा ॥25॥★
��《अर्थ 》→ वीर हनुमान जी!आपका निरंतर जप करने से
सब रोग चले जाते है,और सब पीड़ा मिट जाती है।
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संकट तें हनुमान छुड़ावै,मन क्रम बचन ध्यान
जो लावै॥26॥★
��《अर्थ 》→ हे हनुमान जी! विचार करने मे,कर्म करने
मे और बोलने मे,जिनका ध्यान आपमे रहता है,उनको सब
संकटो से आप छुड़ाते है।★
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सब पर राम तपस्वी राजा,तिनके काज सकल तुम साजा॥
27॥★
��《अर्थ 》→ तपस्वी राजा श्री रामचन्द्र जी सबसे
श्रेष्ठ है,उनके सब कार्यो को आपने सहज मे कर
दिया।★
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और मनोरथ जो कोइ लावै,सोई अमित जीवन फल पावै॥28॥

��《अर्थ 》→ जिसपर आपकी कृपा हो,वह कोई
भी अभिलाषा करे तो उसे ऐसा फल मिलता है
जिसकी जीवन मे कोई सीमा नही होती।★
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चारों जुग परताप तुम्हारा,है परसिद्ध जगत उजियारा॥
29॥★
��《अर्थ 》→ चारो युगों सतयुग,त्रेता,द्वापर
तथा कलियुग मे आपका यश फैला हुआ है,जगत मे
आपकी कीर्ति सर्वत्र प्रकाशमान है।★
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साधु सन्त के तुम रखवारे,असुर निकंदन राम दुलारे॥
30॥★
��《अर्थ 》→ हे श्री राम के दुलारे ! आप
सज्जनों की रक्षा करते है और दुष्टों का नाश करते
है।★
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अष्ट सिद्धि नौ निधि के दाता ,अस बर दीन जानकी माता॥
३१॥★
��《अर्थ 》→ आपको माता श्री जानकी से ऐसा वरदान
मिला हुआ है,जिससे आप
किसी को भी आठों सिद्धियां और नौ निधियां दे सकते
है।★
1.) अणिमा → जिससे साधक किसी को दिखाई
नही पड़ता और कठिन से कठिन पदार्थ मे प्रवेश कर
जाता है।★
2.) महिमा → जिसमे योगी अपने को बहुत
बड़ा बना देता है।★
3.) गरिमा → जिससे साधक अपने को चाहे
जितना भारी बना लेता है।★
4.) लघिमा → जिससे जितना चाहे उतना हल्का बन
जाता है।★
5.) प्राप्ति → जिससे इच्छित पदार्थ
की प्राप्ति होती है।★
6.) प्राकाम्य → जिससे इच्छा करने पर वह पृथ्वी मे
समा सकता है,आकाश मे उड़ सकता है।★
7.) ईशित्व → जिससे सब पर शासन का सामर्थय
हो जाता है।★
8.)वशित्व → जिससे दूसरो को वश मे किया जाता है।★
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राम रसायन तुम्हरे पासा,सदा रहो रघुपति के दासा॥32॥

��《अर्थ 》→ आप निरंतर श्री रघुनाथ जी की शरण मे
रहते है,जिससे आपके पास बुढ़ापा और असाध्य
रोगों के नाश के लिए राम नाम औषधि है।★
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तुम्हरे भजन राम को पावै,जनम जनम के दुख बिसरावै॥
33॥★
��《अर्थ 》→ आपका भजन करने सेर श्री राम
जी प्राप्त होते है,और जन्म जन्मांतर के दुःख दूर
होते है।★
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अन्त काल रघुबर पुर जाई,जहाँ जन्म हरि भक्त कहाई॥
34॥★
��《अर्थ 》→ अंत समय श्री रघुनाथ जी के धाम
को जाते है और यदि फिर भी जन्म लेंगे
तो भक्ति करेंगे और श्री राम भक्त कहलायेंगे।★
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और देवता चित न धरई,हनुमत सेई सर्व सुख करई॥35॥★
��《अर्थ 》→ हे हनुमान जी!आपकी सेवा करने से सब
प्रकार के सुख मिलते है,फिर अन्य
किसी देवता की आवश्यकता नही रहती।★
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संकट कटै मिटै सब पीरा,जो सुमिरै हनुमत बलबीरा॥36॥

��《अर्थ 》→ हे वीर हनुमान जी! जो आपका सुमिरन
करता रहता है,उसके सब संकट कट जाते है और सब
पीड़ा मिट जाती है।★
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जय जय जय हनुमान गोसाईं,कृपा करहु गुरु देव
की नाई॥37॥★
��《अर्थ 》→ हे स्वामी हनुमान जी!आपकी जय हो,जय
हो,जय हो!आप मुझपर कृपालु श्री गुरु जी के समान
कृपा कीजिए।★
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जो सत बार पाठ कर कोई,छुटहि बँदि महा सुख होई॥38॥★
��《अर्थ 》→ जो कोई इस हनुमान चालीसा का सौ बार
पाठ करेगा वह सब बन्धनों से छुट जायेगा और उसे
परमानन्द मिलेगा।★
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जो यह पढ़ै हनुमान चालीसा,होय सिद्धि साखी गौरीसा॥
39॥★
��《अर्थ 》→ भगवान शंकर ने यह हनुमान
चालीसा लिखवाया,इसलिए वे साक्षी है,कि जो इसे
पढ़ेगा उसे निश्चय ही सफलता प्राप्त होगी।★
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तुलसीदास सदा हरि चेरा,कीजै नाथ हृदय मँह डेरा॥40॥

��《अर्थ 》→ हे नाथ हनुमान जी! तुलसीदास
सदा ही श्री राम का दास है।इसलिए आप उसके हृदय मे
निवास कीजिए।★
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पवन तनय संकट हरन,मंगल मूरति रुप।
राम लखन सीता सहित,हृदय बसहु सुरभुप॥★
��《अर्थ 》→ हे संकट मोचन पवन कुमार!आप आनन्द
मंगलो पकके स्वरुप है।हे देवराज! आप
श्री राम,सीता जी और लक्ष्मण सहित मेरे हृदय मे
निवास कीजिए।★

�� सीता राम दुत हनुमान जी को समर्पित��