Friday 20 February 2015

प्राचीन उज्जैन के बारे में

क्या आप जानते हैं कि... उज्जैन में आज
जहां महाकाल मंदिर है.....
वहां प्राचीन समय में बहुत
ही घना वन हुआ करता था,
जिसके अधिपति महाकाल थे..... इसलिए, इसे
महाकाल वन
भी कहा जाता था। स्कंदपुराण के
अवंती खंड, शिव महापुराण,
मत्स्य पुराण आदि में महाकाल वन का वर्णन
मिलता है। शिव महापुराण
की उत्तराद्र्ध के 22वे अध्याय के
अनुसार...... दूषण नामक एक दैत्य से
भक्तों की रक्षा करने के लिए
भगवान शिव... ज्योति के रूप में यहां प्रकट
हुए थे। दूषण नमक दैत्य ...संसार का काल
था.... और, भगवान् शिव ने उसे नष्ट
किया .....अत:, वे महाकाल के नाम से पूज्य
हुए। और, अगर
वैज्ञानिकता की बात करें तो....
इसका एक वैज्ञानिक कारण
भी है .....Tropic of
cancer मतलब... कर्क रेखा ...... उज्जैन
से गुजरती है ....जिस कारण
यह पृथ्वी के केंद्र में
आती है और यहाँ .... काल
की गणना सबसे
सटीक तरीके से
की जा सकती है...
.. जिस कारण भी इन्हें
महाकाल कहा जाता है...! दृष्टव्य है
कि.... उजैन नगरी एक
काफी प्राचीन
नगरी है.... तथा... महाभारत
और स्कन्द पुराण के अनुसार .... उज्जैन
नगरी 3000 साल
पुरानी है...! उज्जैन के
तत्कालीन राजा राजा चंद्रसेन के युग
में यहां एक भव्य मंदिर बनाया गया....
जो महाकाल का पहला मंदिर था.....!
महाकाल का वास होने के कारण.... पुरातन
साहित्य में उज्जैन को महाकालपुरम
भी कहा गया है। दुनिया में
मौजूद....12 ज्योतिर्लिंगों में से एक ....
महाकालेश्वर कई कारणों से अलग हैं।
महाकाल के दर्शन से कई परेशानियों से
मुक्ति मिलती है.... और,
खासतौर पर महाकाल के दर्शन के बाद
अकाल मृत्यु का भय दूर हो जाता है
क्योंकि महाकाल को काल
का अधिपति माना गया है...!
सभी देवताओं में भगवान शिव
ही एकमात्र ऐसे देवता हैं.....
जिनका पूजन लिंग रूप में
भी किया जाता है। भारत में
विभिन्न स्थानों पर भगवान शिव के प्रमुख 12
शिवलिंग स्थापित हैं...
जिनकी महिमा का वर्णन अनेक
धर्म ग्रंथों में लिखा है।
इनकी महिमा को देखते हुए
ही.... इन्हें ज्योतिर्लिंग
भी कहा जाता है।+ यूं तो इन
सभी ज्योतिर्लिंगों का अपना अलग
महत्व है.... लेकिन, इन
सभी में उज्जैन स्थित
महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग का विशेष स्थान
है। क्योंकि, धर्म ग्रंथों के अनुसार- आकाशे
तारकेलिंगम्, पाताले हाटकेश्वरम् मृत्युलोके च
महाकालम्, त्रयलिंगम् नमोस्तुते।। अर्थात....
आकाश में तारक लिंग, पाताल में हाटकेश्वर
लिंग और पृथ्वी पर
महाकालेश्वर से बढ़कर अन्य कोई ज्योतिर्लिंग
नहीं है। इसलिए,
महाकालेश्वर
को पृथ्वी का अधिपति
भी माना जाता है..... अर्थात.. वे
ही संपूर्ण
पृथ्वी के एकमात्र राजा हैं।
सिर्फ
इतना ही नहीं....
. महाकालेश्वर की एक और
खास विशेषता यह भी है
कि ....सभी प्रमुख 12
ज्योतिर्लिंगों में एकमात्र महाकालेश्वर
ही दक्षिणमुखी
हैं.... अर्थात, इनकी मुख
दक्षिण की ओर है।
क्योंकि....धर्म शास्त्रों के अनुसार दक्षिण
दिशा के स्वामी स्वयं भगवान
यमराज हैं.... इसलिए, यह
भी मान्यता है
कि जो भी सच्चे मन से भगवान
महाकालेश्वर के दर्शन व पूजन
करता है,,,,, उसे, मृत्यु उपरांत यमराज
द्वारा दी जाने
वाली यातनाओं से मुक्ति मिल
जाती है। सिर्फ
इतना ही नहीं....
. संपूर्ण विश्व में महाकालेश्वर
ही एकमात्र ऐसा ज्योतिर्लिंग
है...... जहां भगवान शिव
की भस्मारती
की जाती है।
भस्मारती को देखने के लिए दूर-दूर
से श्रद्धालु यहां आते हैं.... और,
मान्यता है कि प्राचीन काल में
मुर्दे की भस्म से भगवान
महाकालेश्वर
की भस्मारती
की जाती
थी..... लेकिन, कालांतर में यह
प्रथा समाप्त हो गई और वर्तमान में गाय के
गोबर से बने उपलों(कंडों) की भस्म
से महाकाल
की भस्मारती
की जाती है। यह
आरती सूर्योदय से पूर्व सुबह 4
बजे
की जाती है......
जिसमें भगवान को स्नान के बाद भस्म चढ़ाई
जाती है।

अकाल मृत्यु
वो मरे.... .....जो काम करे चांडाल का....! काल
उसका क्या करे.... जो भक्त हो
महाकाल का...!! जय महाकाल...!!

श्री हनुमान चालीसा अर्थ सहित !!

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श्री गुरु चरण सरोज रज,निज मन मुकुरु सुधारि।
बरनऊँ रघुवर बिमल जसु,जो दायकु फल चारि।
《अर्थ》→ शरीर गुरु महाराज के चरण
कमलों की धूलि से अपने मन रुपी दर्पण को पवित्र
करके श्री रघुवीर के निर्मल यश का वर्णन
करता हूँ,जो चारों फल धर्म,अर्थ,काम और मोक्ष
को देने वाला हे।★
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बुद्धिहीन तनु जानिके,सुमिरो पवन-कुमार।
बल बुद्धि विद्या देहु मोहिं,हरहु कलेश विकार।★
《अर्थ》→ हे पवन कुमार! मैं आपको सुमिरन
करता हूँ। आप तो जानते ही हैं,कि मेरा शरीर और
बुद्धि निर्बल है।मुझे शारीरिक बल,सदबुद्धि एवं
ज्ञान दीजिए और मेरे दुःखों व दोषों का नाश कार
दीजिए।★
जय हनुमान ज्ञान गुण सागर,जय कपीस तिहुँ लोक
उजागर॥1॥★
《अर्थ 》→ श्री हनुमान जी!आपकी जय हो।
आपका ज्ञान और गुण अथाह है। हे कपीश्वर!
आपकी जय हो!तीनों लोकों,स्वर्ग लोक,भूलोक और
पाताल लोक में आपकी कीर्ति है।★
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राम दूत अतुलित बलधामा, अंजनी पुत्र पवन सुत नामा॥
2॥★
《अर्थ》→ हे पवनसुत अंजनी नंदन!आपके समान
दूसरा बलवान नही है।★
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महावीर विक्रम बजरंगी, कुमति निवार सुमति के संगी॥3॥

《अर्थ》→ हे महावीर बजरंग बली!आप विशेष पराक्रम
वाले है। आप खराब बुद्धि को दूर करते है,और
अच्छी बुद्धि वालो के साथी,सहायक है।★
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कंचन बरन बिराज सुबेसा ,कानन कुण्डल कुंचित केसा॥
4॥★
《अर्थ》→ आप सुनहले रंग,सुन्दर
वस्त्रों,कानों में कुण्डल और घुंघराले बालों से
सुशोभित हैं।★
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हाथ ब्रज और ध्वजा विराजे,काँधे मूँज जनेऊ साजै॥
5॥★
《अर्थ》→ आपके हाथ मे बज्र और ध्वजा है और
कन्धे पर मूंज के जनेऊ की शोभा है।★
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शंकर सुवन केसरी नंदन,तेज प्रताप महा जग वंदन॥6॥★
《अर्थ 》→ हे शंकर के अवतार!हे केसरी नंदन आपके
पराक्रम और महान यश की संसार भर मे
वन्दना होती है।★
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विद्यावान गुणी अति चातुर,रान काज करिबे को आतुर॥
7॥★
《अर्थ 》→ आप प्रकान्ड विद्या निधान है,गुणवान
और अत्यन्त कार्य कुशल होकर श्री राम काज करने
के लिए आतुर रहते है।★
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प्रभु चरित्र सुनिबे को रसिया, राम लखन सीता मन
बसिया॥8॥★
《अर्थ 》→ आप श्री राम चरित सुनने मे आनन्द रस
लेते है।श्री राम,सीताऔर लखन आपके हृदय मे बसे
रहते है।★
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सूक्ष्म रुप धरि सियहिं दिखावा,बिकट रुप धरि लंक
जरावा॥9॥★
《अर्थ》→ आपने अपना बहुत छोटा रुप धारण करके
सीता जी को दिखलाया और भयंकर रूप करके
लंका को जलाया।★
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भीम रुप धरि असुर संहारे,रामचन्द्र के काज संवारे॥
10॥★
《अर्थ 》→ आपने विकराल रुप धारण करके
राक्षसों को मारा और श्री रामचन्द्र जी के
उदेश्यों को सफल कराया।★
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लाय सजीवन लखन जियाये,श्री रघुवीर हरषि उर लाये॥11॥

《अर्थ 》→ आपने संजीवनी बुटी लाकर लक्ष्मण
जी को जिलाया जिससे श्री रघुवीर ने हर्षित होकर
आपको हृदय से लगा लिया।★
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रघुपति कीन्हीं बहुत बड़ाई,तुम मम प्रिय भरत सम भाई॥
12॥★
《अर्थ 》→ श्री रामचन्द्र ने आपकी बहुत
प्रशंसा कीऔर कहा की तुम मेरे भरत जैसे प्यारे
भाई हो।★
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सहस बदन तुम्हरो जस गावैं,अस कहि श्री पति कंठ
लगावैं॥13॥★
《अर्थ 》→ श्री राम ने आपको यह कहकर हृदय से
लगा लिया की तुम्हारा यश हजार मुख से सराहनीय है।★
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सनकादिक ब्रह्मादि मुनीसा, नारद,सारद सहित अहीसा॥
14॥★
《अर्थ》→
श्री सनक,श्री सनातन,श्री सनन्दन,श्री सनत्कुमार
आदि मुनि ब्रह्मा आदि देवता नारद
जी,सरस्वती जी,शेषनाग जी सब आपका गुण गान करते
है।★
••••••••••••••••••••••••••••••
जम कुबेर दिगपाल जहाँ ते,कबि कोबिद कहि सके
कहाँ ते॥15॥★
《अर्थ 》→ यमराज,कुबेर आदि सब दिशाओं के
रक्षक,कवि विद्वान,पंडित या कोई भी आपके यश
का पूर्णतः वर्णन नहीं कर सकते।★
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तुम उपकार सुग्रीवहि कीन्हा,राम मिलाय राजपद
दीन्हा॥16॥★
《अर्थ 》→ आपनें सुग्रीव जी को श्रीराम से
मिलाकर उपकार किया ,जिसके कारण वे राजा बने।★
•••••••••••••••••••••••••••••••
तुम्हरो मंत्र विभीषण माना,लंकेस्वर भए सब जग
जाना॥17॥★
《अर्थ 》→ आपके उपदेश का विभिषण जी ने पालन
किया जिससे वे लंका के राजा बने,इसको सब संसार
जानता है।★
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जुग सहस्त्र जोजन पर भानू,लील्यो ताहि मधुर फल
जानू॥18॥★
《अर्थ 》→ जो सूर्य इतने योजन दूरी पर है की उस पर
पहुँचने के लिए हजार युग लगे।दो हजार योजन
की दूरी पर स्थित सूर्य को आपने एक मीठा फल समझकर
निगल लिया।★
•••••••••••••••••••••••••••••••
प्रभु मुद्रिका मेलि मुख माहि,जलधि लांघि गये अचरज
नाहीं॥19॥★
《अर्थ 》→ आपने श्री रामचन्द्र
जी की अंगूठी मुँह
मे रखकर समुद्र को लांघ
लिया,इसमें कोई आश्चर्य नही है।★
••••••••••••••••••••••••••••••
दुर्गम काज जगत के जेते,सुगम अनुग्रह तुम्हरे
तेते॥20॥★
《अर्थ 》→ संसार मे जितने भी कठिन से कठिन काम
हो,वो आपकी कृपा से सहज हो जाते है।★
••••••••••••••••••••••••••••••
राम दुआरे तुम रखवारे,होत न आज्ञा बिनु पैसा रे ॥
21॥★
《अर्थ 》→ श्री रामचन्द्र जी के द्वार के आप
रखवाले है,जिसमे आपकी आज्ञा बिना किसी को प्रवेश
नही मिलता अर्थात आपकी प्रसन्नता के बिना राम
कृपा दुर्लभ है।★
••••••••••••••••••••••••••••••
सब सुख लहै तुम्हारी सरना,तुम रक्षक काहू
को डरना ॥22॥★
《अर्थ 》→ जो भी आपकी शरण मे आते है,उस
सभी को आन्नद प्राप्त होता है,और जब आप रक्षक
है,तो फिर किसी का डर नही रहता।★
••••••••••••••••••••••••••••••
आपन तेज सम्हारो आपै,तीनों लोक हाँक ते काँपै॥
23॥★
《अर्थ 》→ आपके सिवाय आपके वेग को कोई नही रोक
सकता,आपकी गर्जना से तीनों लोक काँप जाते है।★
••••••••••••••••••••••••••••••
भूत पिशाच निकट नहिं आवै,महावीर जब नाम सुनावै॥24॥

《अर्थ 》→ जहाँ महावीर हनुमान जी का नाम
सुनाया जाता है,वहाँ भूत,पिशाच पास भी नही फटक
सकते।★
••••••••••••••••••••••••••••••
नासै रोग हरै सब पीरा,जपत निरंतर हनुमत बीरा ॥25॥★
《अर्थ 》→ वीर हनुमान जी!आपका निरंतर जप करने से
सब रोग चले जाते है,और सब पीड़ा मिट जाती है।
•••••••••••••••••••••••••••••••
संकट तें हनुमान छुड़ावै,मन क्रम बचन ध्यान
जो लावै॥26॥★
《अर्थ 》→ हे हनुमान जी! विचार करने मे,कर्म करने
मे और बोलने मे,जिनका ध्यान आपमे रहता है,उनको सब
संकटो से आप छुड़ाते है।★
••••••••••••••••••••••••••••••
सब पर राम तपस्वी राजा,तिनके काज सकल तुम साजा॥
27॥★
《अर्थ 》→ तपस्वी राजा श्री रामचन्द्र जी सबसे
श्रेष्ठ है,उनके सब कार्यो को आपने सहज मे कर
दिया।★
•••••••••••••••••••••••••••••••
और मनोरथ जो कोइ लावै,सोई अमित जीवन फल पावै॥28॥

《अर्थ 》→ जिसपर आपकी कृपा हो,वह कोई
भी अभिलाषा करे तो उसे ऐसा फल मिलता है
जिसकी जीवन मे कोई सीमा नही होती।★
••••••••••••••••••••••••••••••
चारों जुग परताप तुम्हारा,है परसिद्ध जगत उजियारा॥
29॥★
《अर्थ 》→ चारो युगों सतयुग,त्रेता,द्वापर
तथा कलियुग मे आपका यश फैला हुआ है,जगत मे
आपकी कीर्ति सर्वत्र प्रकाशमान है।★
••••••••••••••••••••••••••••••
साधु सन्त के तुम रखवारे,असुर निकंदन राम दुलारे॥
30॥★
《अर्थ 》→ हे श्री राम के दुलारे ! आप
सज्जनों की रक्षा करते है और दुष्टों का नाश करते
है।★
•••••••••••••••••••••••••••••••
अष्ट सिद्धि नौ निधि के दाता ,अस बर दीन जानकी माता॥
३१॥★
《अर्थ 》→ आपको माता श्री जानकी से ऐसा वरदान
मिला हुआ है,जिससे आप
किसी को भी आठों सिद्धियां और नौ निधियां दे सकते
है।★
1.) अणिमा → जिससे साधक किसी को दिखाई
नही पड़ता और कठिन से कठिन पदार्थ मे प्रवेश कर
जाता है।★
2.) महिमा → जिसमे योगी अपने को बहुत
बड़ा बना देता है।★
3.) गरिमा → जिससे साधक अपने को चाहे
जितना भारी बना लेता है।★
4.) लघिमा → जिससे जितना चाहे उतना हल्का बन
जाता है।★
5.) प्राप्ति → जिससे इच्छित पदार्थ
की प्राप्ति होती है।★
6.) प्राकाम्य → जिससे इच्छा करने पर वह पृथ्वी मे
समा सकता है,आकाश मे उड़ सकता है।★
7.) ईशित्व → जिससे सब पर शासन का सामर्थय
हो जाता है।★
8.)वशित्व → जिससे दूसरो को वश मे किया जाता है।★
•••••••••••••••••••••••••••••••
राम रसायन तुम्हरे पासा,सदा रहो रघुपति के दासा॥32॥

《अर्थ 》→ आप निरंतर श्री रघुनाथ जी की शरण मे
रहते है,जिससे आपके पास बुढ़ापा और असाध्य
रोगों के नाश के लिए राम नाम औषधि है।★
•••••••••••••••••••••••••••••••
तुम्हरे भजन राम को पावै,जनम जनम के दुख बिसरावै॥
33॥★
《अर्थ 》→ आपका भजन करने सेर श्री राम
जी प्राप्त होते है,और जन्म जन्मांतर के दुःख दूर
होते है।★
••••••••••••••••••••••••••••••
अन्त काल रघुबर पुर जाई,जहाँ जन्म हरि भक्त कहाई॥
34॥★
《अर्थ 》→ अंत समय श्री रघुनाथ जी के धाम
को जाते है और यदि फिर भी जन्म लेंगे
तो भक्ति करेंगे और श्री राम भक्त कहलायेंगे।★
•••••••••••••••••••••••••••••••
और देवता चित न धरई,हनुमत सेई सर्व सुख करई॥35॥★
《अर्थ 》→ हे हनुमान जी!आपकी सेवा करने से सब
प्रकार के सुख मिलते है,फिर अन्य
किसी देवता की आवश्यकता नही रहती।★
•••••••••••••••••••••••••••••••
संकट कटै मिटै सब पीरा,जो सुमिरै हनुमत बलबीरा॥36॥

《अर्थ 》→ हे वीर हनुमान जी! जो आपका सुमिरन
करता रहता है,उसके सब संकट कट जाते है और सब
पीड़ा मिट जाती है।★
••••••••••••••••••••••••••••••
जय जय जय हनुमान गोसाईं,कृपा करहु गुरु देव
की नाई॥37॥★
《अर्थ 》→ हे स्वामी हनुमान जी!आपकी जय हो,जय
हो,जय हो!आप मुझपर कृपालु श्री गुरु जी के समान
कृपा कीजिए।★
••••••••••••••••••••••••••••••
जो सत बार पाठ कर कोई,छुटहि बँदि महा सुख होई॥38॥★
《अर्थ 》→ जो कोई इस हनुमान चालीसा का सौ बार
पाठ करेगा वह सब बन्धनों से छुट जायेगा और उसे
परमानन्द मिलेगा।★
•••••••••••••••••••••••••••••••
जो यह पढ़ै हनुमान चालीसा,होय सिद्धि साखी गौरीसा॥
39॥★
《अर्थ 》→ भगवान शंकर ने यह हनुमान
चालीसा लिखवाया,इसलिए वे साक्षी है,कि जो इसे
पढ़ेगा उसे निश्चय ही सफलता प्राप्त होगी।★
•••••••••••••••••••••••••••••••
तुलसीदास सदा हरि चेरा,कीजै नाथ हृदय मँह डेरा॥40॥

《अर्थ 》→ हे नाथ हनुमान जी! तुलसीदास
सदा ही श्री राम का दास है।इसलिए आप उसके हृदय मे
निवास कीजिए।★
•••••••••••••••••••••••••••••••
पवन तनय संकट हरन,मंगल मूरति रुप।
राम लखन सीता सहित,हृदय बसहु सुरभुप॥★
《अर्थ 》→ हे संकट मोचन पवन कुमार!आप आनन्द
मंगलो के स्वरुप है।हे देवराज! आप
श्री राम,सीता जी और लक्ष्मण सहित मेरे हृदय मे
निवास कीजिए।★

Tuesday 17 February 2015

घृष्णेश्वर महादेव मंदिर


घृष्णेश्वर महादेव का प्रसिद्ध मंदिर महाराष्ट्र के संभाजीनगर के
समीप दौलताबाद के पास स्थित है। इसे घृसणेश्वर या घुश्मेश्वर
के नाम से भी जाना जाता है। दूर-दूर से लोग यहां दर्शन के लिए
आते हैं और आत्मिक शांति प्राप्त करते हैं। भगवान शिव के 12
ज्योतिर्लिंगों में से यह अंतिम ज्योतिर्लिंग है। बौद्ध भिक्षुओं द्वारा निर्मित
एलोरा की प्रसिद्ध गुफाएं इस मंदिर के समीप स्थित
हैं। यहीं पर श्री एकनाथजी गुरु व
श्री जनार्दन महाराज की समाधि भी है।
परमपिता परमेश्वर महादेव एव माता आदि शक्ति सभी पर
कृपा करे !!

रामेश्वरम ज्योतिर्लिंग


यह ज्योतिर्लिंग तमिलनाडु राज्य के रामनाथ पुरं नामक स्थान में स्थित है।
भगवान शिव के 12 ज्योतिर्लिंगों में से एक होने के साथ-साथ यह स्थान
हिंदुओं के चार धामों में से एक भी है। इस ज्योतिर्लिंग के विषय में
यह मान्यता है, कि इसकी स्थापना स्वयं भगवान
श्रीराम ने की थी। भगवान राम के
द्वारा स्थापित होने के कारण ही इस ज्योतिर्लिंग को भगवान राम
का नाम रामेश्वरम दिया गया है।

नागेश्वर ज्योतिर्लिंग


यह ज्योतिर्लिंग गुजरात के बाहरी क्षेत्र में द्वारिका स्थान में
स्थित है। धर्म शास्त्रों में भगवान शिव नागों के देवता है और नागेश्वर
का पूर्ण अर्थ नागों का ईश्वर है। भगवान शिव का एक अन्य नाम नागेश्वर
भी है। द्वारका पुरी से भी नागेश्वर
ज्योतिर्लिंग की दूरी 17 मील
की है। इस ज्योतिर्लिंग की महिमा में कहा गया है
कि जो व्यक्ति पूर्ण श्रद्धा और विश्वास के साथ यहां दर्शनों के लिए आता है
उसकी सभी मनोकामनाएं
पूरी हो जाती हैं।

वैद्यनाथ


श्री वैद्यनाथ शिवलिंग का समस्त
ज्योतिर्लिंगों की गणना में नौवां स्थान बताया गया है। भगवान
श्री वैद्यनाथ ज्योतिर्लिंग का मन्दिर जिस स्थान पर अवस्थित है,
उसे वैद्यनाथ धाम कहा जाता है। यह स्थान झारखण्ड प्रान्त, पूर्व में
बिहार प्रान्त के संथाल परगना के दुमका नामक जनपद में पड़ता है।

त्र्यंबकेश्वर


यह ज्योतिर्लिंग गोदावरी नदी के करीब
महाराष्ट्र राज्य के नासिक जिले में स्थित है। इस ज्योतिर्लिंग के सबसे अधिक
निकट ब्रह्मागिरि नाम का पर्वत है। इसी पर्वत से
गोदावरी नदी शुरूहोती है। भगवान शिव
का एक नाम त्र्यंबकेश्वर भी है। कहा जाता है कि भगवान शिव
को गौतम ऋषि और गोदावरी नदी के आग्रह पर
यहां ज्योतिर्लिंग रूप में रहना पड़ा।

काशी विश्वनाथ


विश्वनाथ ज्योतिर्लिंग भारत के 12 ज्योतिर्लिंगों में से एक है। यह उत्तर
प्रदेश के काशी नामक स्थान पर स्थित है।
काशी सभी धर्म स्थलों में सबसे अधिक महत्व
रखती है। इसलिए सभी धर्म स्थलों में
काशी का अत्यधिक महत्व कहा गया है। इस स्थान
की मान्यता है, कि प्रलय आने पर भी यह स्थान
बना रहेगा। इसकी रक्षा के लिए भगवान शिव इस स्थान को अपने
त्रिशूल पर धारण कर लेंगे और प्रलय के टल जाने पर
काशी को उसके स्थान पर पुन: रख देंगे।

भीमाशंकर


भीमाशंकर ज्योतिर्लिंग महाराष्ट्र के पूणे जिले में सह्याद्रि नामक
पर्वत पर स्थित है। भीमाशंकर ज्योतिर्लिंग को मोटेश्वर महादेव
के नाम से भी जाना जाता है। इस मंदिर के विषय में मान्यता है
कि जो भक्त श्रृद्धा से इस मंदिर के प्रतिदिन सुबह सूर्य निकलने के बाद
दर्शन करता है, उसके सात जन्मों के पाप दूर हो जाते हैं तथा उसके लिए
स्वर्ग के मार्ग खुल जाते हैं।

केदारनाथ


केदारनाथ स्थित ज्योतिर्लिंग भी भगवान शिव के 12 प्रमुख
ज्योतिर्लिंगों में आता है। यह उत्तराखंड में स्थित है। बाबा केदारनाथ का मंदिर
बद्रीनाथ के मार्ग में स्थित है। केदारनाथ समुद्र तल से 3584
मीटर की ऊँचाई पर स्थित है। केदारनाथ का वर्णन
स्कन्द पुराण एवं शिव पुराण में भी मिलता है। यह
तीर्थ भगवान शिव को अत्यंत प्रिय है। जिस प्रकार कैलाश
का महत्व है उसी प्रकार का महत्व शिव जी ने
केदार क्षेत्र को भी दिया है।

ओंकारेश्वर


ओंकारेश्वर ज्योतिर्लिंग मध्य प्रदेश के प्रसिद्ध शहर इंदौर के
समीप स्थित है। जिस स्थान पर यह ज्योतिर्लिंग स्थित है, उस
स्थान पर नर्मदा नदी बहती है और
पहाड़ी के चारों ओर नदी बहने से यहां ऊं का आकार
बनता है। ऊं शब्द की उत्पति ब्रह्मा के मुख से हुई है।
इसलिए किसी भी धार्मिक शास्त्र या वेदों का पाठ ऊं के
साथ ही किया जाता है। यह ज्योतिर्लिंग औंकार अर्थात ऊं
का आकार लिए हुए है, इस कारण इसे ओंकारेश्वर नाम से जाना जाता है।

महाकालेश्वर


यह ज्योतिर्लिंग मध्य प्रदेश की धार्मिक
राजधानी कही जाने वाली उज्जैन
नगरी में स्थित है। महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग
की विशेषता है कि ये एकमात्र दक्षिणमुखी ज्योतिर्लिंग
है। यहां प्रतिदिन सुबह की जाने
वाली भस्मारती विश्व भर में प्रसिद्ध है।
महाकालेश्वर की पूजा विशेष रूप से आयु वृद्धि और आयु पर
आए हुए संकट को टालने के लिए की जाती है।
उज्जैन वासी मानते हैं कि भगवान महाकालेश्वर
ही उनके राजा हैं और वे ही उज्जैन
की रक्षा कर रहे हैं।

मल्लिकार्जुन


यह ज्योतिर्लिंग आन्ध्र प्रदेश में कृष्णा नदी के तट पर
श्रीशैल नाम के पर्वत पर स्थित है। इस मंदिर का महत्व
भगवान शिव के कैलाश पर्वत के समान कहा गया है। अनेक धार्मिक शास्त्र
इसके धार्मिक और पौराणिक महत्व की व्याख्या करते हैं।
कहते हैं कि इस ज्योतिर्लिंग के दर्शन करने मात्र से
ही व्यक्ति को उसके सभी पापों से
मुक्ति मिलती है। एक पौराणिक कथा के अनुसार जहां पर यह
ज्योतिर्लिंग है, उस पर्वत पर आकर शिव का पूजन करने से
व्यक्ति को अश्वमेध यज्ञ के समान पुण्य फल प्राप्त होते हैं।

सोमनाथ


सोमनाथ ज्योतिर्लिंग भारत का ही नहीं अपितु इस
पृथ्वी का पहला ज्योतिर्लिंग माना जाता है। यह मंदिर गुजरात
राज्य के सौराष्ट्र क्षेत्र में स्थित है। शिवपुराण के अनुसार जब
चंद्रमा को दक्ष प्रजापति ने क्षय रोग होने का श्राप दिया था, तब चंद्रमा ने
इसी स्थान पर तप कर इस श्राप से मुक्ति पाई थी।
ऐसा भी कहा जाता है कि इस शिवलिंग
की स्थापना स्वयं चंद्रदेव ने की थी।
विदेशी आक्रमणों के कारण यह 17 बार नष्ट हो चुका है। हर
बार यह बिगड़ता और बनता रहा है।