Tuesday 17 March 2015

सिंहस्थ में ATM खुद आपके पास आएगा

सिंहस्थ-2016 में आने वाले
श्रद्धालुओं को स्र्पए निकालने के लिए एटीएम खोजने
की मशक्कत नहीं करना होगी। खुद
एटीएम लोगों तक पहुंच जाएगा। सिंहस्थ मेला प्रशासन ने
जोनवार मोबाइल एटीएम सुविधा मुहैया कराने की
तैयारी की है। सभी प्रमुख बैंकों से
कहा गया है कि वे हर जोन में एक मोबाइल एटीएम चलाने
की तैयारी करें। विदेशी
यात्री मेला क्षेत्र में अपनी मुद्रा स्र्पए में
कनवर्ट भी करा सकेंगे। इसके लिए अलग से काउंटर खोले
जाएंगे।
सिंहस्थ में 5 करोड़ श्रद्धालु आएंगे। अनुमान है हर दिन 20 लाख से
ज्यादा लोग मेला क्षेत्र में रहेंगे। इन्हें मेला क्षेत्र में ही
बैंकिंग सुविधा प्रदान करने के लिए मेला प्रशासन ने कैश प्लान तैयार किया
है। सिंहस्थ क्षेत्र 6 जोन में बंटा रहेगा। अफसरों ने बैंकों से कहा है
कि हर जोन में अपना एक मोबाइल एटीएम संचालित करें।
50 से अधिक चलित एटीएम सुविधा मुहैया कराने
की योजना है। ये एटीएम निरंतर मेला क्षेत्र में
निरंतर घूमता रहेगा, ताकि श्रद्धालु जहां हो, वहीं स्र्पए
निकाल सके। इसके साथ ही फॉरेन कॅरंसी
एक्सचेंज के लिए अलग से बैंकों के काउंटर स्थापित किए जाएंगे। यहां
किसी भी देश की मुद्रा स्र्पए में
कनवर्ट कराई जा सकेगी। दो बैंकों ने सहमति के साथ अपने
प्रस्ताव भी दे दिए हैं।
सहमति मिली
सिंहस्थ का कैश प्लान बनाया है ताकि लोगों को मेला क्षेत्र में
ही बैंकिंग सुविधा का लाभ मिल सके । बैंकों से प्रस्ताव मंगाए
हैं। बैंक ऑफ इंडिया और आईसीआईसीआई
की सहमति मिल चुकी है। -अविनाश लवानिया,
सिंहस्थ मेला अधिकारी
..और मोबाइल बैटरी चार्ज स्टेशन भी
सिंहस्थ पड़ाव स्थल और मार्गों पर विभिन्न मोबाइल कंपनियां
बैटरी चार्ज स्टेशन भी खोलेंगी। यहां
किसी भी कंपनी का मोबाइल चार्ज
कराया जा सकेगा। मेला प्रशासन ने मोबाइल कंपनियों के साथ इस संबंध में
चर्चा प्रारंभ की है।

Sunday 15 March 2015

Jay shree mahankal

कई देवता इस दुनिया में, सबके रूप
सुहाने हैं.......
.
.
उज्जैन में जो सजकर बैठे हैं, हम उसके
दिवाने हैं.....!!

।।ॐ।। जय श्री महांकाल ।।ॐ।।

12 साल बाद उज्जैन सिंहस्थ में अमृत बरसाएगे ग्रह

12 साल बाद उज्जैन में वर्ष 2016 में लगने
जा रहा सिंहस्थ महाकुंभ विशिष्ट संयोग लेकर आ रहा है। 5118 साल
बाद सिंहस्थ के दौरान सिद्ध अमृत योग बन रहा है। ज्योतिष शास्त्र
के अनुसार यह स्थिति इस विशिष्ट अवसर को और भी खास बनाएगी।
ज्योतिषाचार्य पं. अमर डब्बावाला ने बताया कि ग्रहगोचर, चंद्रमास,
नक्षत्र मेखला तथा कलियुग की उत्पत्ति की गणना के अनुसार इस
बार सिंहस्थ सिद्ध अमृत योग की साक्षी में मनेगा। धार्मिक दृष्टि से
यह योग खास महत्व रखता है। प्राचीन ग्रंथों की मान्यता के अनुसार
सिंहस्थ के समय अमृत कलश से कुछ बूंदें तीर्थनगरी अवंतिका में
शिप्रा नदी में गिरी थीं। सिंहस्थ के समय शिप्रा जल के अमृत तुल्य
हो जाने की मान्यता है। पहली बार सिंहस्थ में
ग्रहों की स्थिति भी अमृत तुल्य बन रही है।
सिंहस्थ में दिव्य योग के साथ यह स्नान
22 अप्रैल 2016 : पहला स्नान
चैत्र शुक्ल पूर्णिमा को शुक्रवार के दिन वरयान योग की साक्षी में
तुला राशि का चंद्रमा सिद्ध अमृत योग का निर्माण कर रहा है। इस
योग की साक्षी में सिंहस्थ के स्नान पर्व का शुरु होना, मास पर्यंत
शुभफल प्रदान करेगा।
6 मई 2016 : दूसरा स्नान
वैशाख कृष्ण अमावस्या को शुक्रवार के दिन अश्विनी नक्षत्र
की साक्षी में मेष राशि का चंद्रमा उदय काल में अमृतसिद्धि तथा दिन
में सर्वार्थसिद्धि योग का निर्माण कर रहा है। अमावस्या के दिन
ऐसा योगों का बनना सिद्ध अमृत योग कहलाता है।
9 मई 2016 : तीसरा स्नान
वैशाख शुक्ल तृतीया (आखातीज) को सोमवार के दिन मृगशिरा नक्षत्र
की साक्षी में सुकर्मायोग अमृतसिद्धि योग का निर्माण कर रहा है। यह
भी सिद्ध अमृत योग की गणना में आता है।
21 मई 2016 : शाही स्नान
वैशाख शुक्ल पूर्णिमा (बुद्ध पूर्णिमा) पर शनिवार के दिन
विशाखा नक्षत्र में परिघ योग, विष्टि करण, तुला राशि तथा वृश्चिक
राशि के चंद्रमा के संधि काल में शुभ अभिजीत योग बनेगा।

सिंहस्थ 2016 की तैयारिया

सिंहस्थ 2016 के लिये नगर निगम ने विशेष
कार्ययोजना को अंजाम देने के लिये निर्णय लिया है। सिंहस्थ के पहले
ही निगम द्वारा यातायात की सुविधा हेतु शहर भर में पचास से अधिक
हाईमास्ट लगाने की तैयारी की है, इसके बाद शहर हाईमास्ट
की रोशनी से चमक उठेगा। इसी के साथ ही सेतु निगम ने भी 11
पुलों की मरम्त का कार्य शुरू करने की घोषणा की है। नए बनने वाले
सभी पुलों पर रैलिंग लगाई जाएगी एवं शासकीय वनों की रंगाई-पुताई के
टेण्डर जून माह पूर्व लगाने के निर्देश मेला अधिकारी अनिवाश
लवानिया द्वारा संबंधित विभाग को दिये गये है। सड़क, पुल एवं
यातायात उप समिति की बैठक सिंहस्थ मेला कार्यालय में सिंहस्थ
प्राधिकरण के अध्यक्ष दिवाकर नातू की अध्यक्षता में आयोजित हुई।
सिंहस्थ प्राधिकरण अध्यक्ष श्री नातू ने बैठक में उप समिति के
सचिव को निर्देश दिये कि वे समिति के सदस्यों के साथ संपूर्ण
मेला क्षेत्र का निरीक्षण करें एवं समन्वय के साथ कार्य करें। बैठक में
उप मेला अधिकारी गोपाल डाड सहित लोक निर्माण, सेतू, सड़क
विकास निगम एवं यातायात पुलिस के अधिकारी मौजूद थे। बैठक में उप
मेला अधिकारी गोपाल डाड ने उप समिति के दायित्वों पर प्रकाश
डालते हुए बताया कि यह उप समिति शहर के मार्गों का निरीक्षण कर
सड़कों एवं पुलों पर विद्युतीकरण व्यवस्था, भीड़़ को नियंत्रित करने
हेतु बैरिकेटिंग की व्यवस्था, पैन्टुन ब्रिज निर्माण की आवश्यकता एवं
एकांकी मार्गों की समीक्षा करेगी।

मेला प्रशासन लेगा 2 करोड़ रुपए की पॉलिसी


सिंहस्थ-2016 के दौरान उज्जैन में कदम रखते
ही आपका 2 लाख रुपए का दुर्घटना बीमा हो जाएगा। मेला प्रशासन
महाकुंभ में आने वाले श्रद्धालुओं के लिए 2 करोड़ रुपए
की पॉलिसी लेगा। सिंहस्थ राज्य साधिकार समिति से निविदा निकाल
पॉलिसी खरीदने की स्वीकृति मिल चुकी है।
मेला अधिकारी अविनाश लवानिया ने बताया सिंहस्थ में 5 करोड़
लोगों का आना संभावित है। भीड़ प्रबंधन सहित
यात्रियों की सुरक्षा के तमाम इंतजाम किए जा रहे हैं। एहतियातन
बीमा भी कराया जा रहा है। ताकि कोई हादसा होने पर इसका लाभ मिल
सके।
निविदा निकालकर बीमा कंपनियों से प्रस्ताव बुलाएंगे। जिस
कंपनी का प्रस्ताव सबसे बेहतर होगा, उससे पॉलिसी खरीदी जाएगी।
टेंडर में ही अन्य शर्तों का निर्धारण किया जाएगा। अफसरों के अनुसार
किसी श्रद्धालु के साथ हादसा होने पर मेला प्रशासन
द्वारा राशि क्लेम की जाएगी। बीमा कंपनी से भुगतान लेने के बाद इसे
संबंधित तक पहुंचाया जाएगा।
सरकार ने घटाया बजट, क्लेम भी कम
प्रशासन ने पूर्व में राज्य साधिकार समिति को 5 करोड़ रुपए
की पॉलिसी खरीदने का प्रस्ताव दिया था। हालांकि राशि घटाकर 2
करोड़ रुपए कर दी गई। अगर 5 करोड़ रुपए मंजूर होते तो क्लेम
राश्ाि 5 लाख रुपए हो जाती।

उज्जैन महाकुम्भ का इतिहास

सिंहस्थ २०१६
उज्जैन धार्मिक अस्थाओ व परंपरा के सम्मलेन का एक अनूठा शहर
जो कि न केवल भारत अपितु समस्त संसार कि धार्मिक अस्थाओ
का केंद्र कहा जा सकता है यह वह पवित्र नगरी है जहा ८४ महादेव,
सात सागर,९ नारायण ,२ शक्ति पीठो के साथ विश्व मै १२
जोतिलिंगो मै से एक राजाधिराज महाकालेश्वर विराजमान है यह वह
पवन नगरी है जिसमें गीता जैसे महान ग्रन्थ के उद्बोधक श्री कृष्ण
स्वयं शिक्षा लेने आए अपने पैरों कि धुल से पाषणों को भी जीवटी कर
देने वाले प्रभु श्री राम स्वयम अपने पिता तर्पण करने शिप्रा तट पर
आए यही वह स्थान है जो कि रामघाट कहलाता है इस प्रकार विश्व के
एक मात्र राजा जिसने कि सम्पुर्ण भारत वर्ष के प्रत्यक नागरिक
को कर्ज मुख्त कर दिया वह महान शासक विक्रमादित्य उज्जैन
कि हि पवन भूमि पर जन्मे | पवन
सलिला मुक्तिदायिनी माँ शिप्रा यही पर प्रवाहित होती है एवं विश्व
का सबसे बड़ा महापर्व महाकुम्ब /सिंहस्थ मेला विश्व के ४ स्थान मै
से एक उज्जैन नगर मै लगता है इस नगरी कि महात्मा वर्णन
करना उतना हि कठिन है जितना कि आकाश मै
तारा गानों कि गिनती करना जय श्री महाकाल !!!
सिंहस्थ (कुम्भ) हमारी धार्मिक एवं
आध्यात्मिक चेतना का महा पर्व है| सनातन कल से यह संसार
का सबसे बढ़ा मेला कहा जा सकता है| पुराणोंमें कुम्भ पर्व मनाये जाने
के संभंध में कई कथाएँ है| सबसेप्रामाणिक कथा समुद्र मंथन की है |
देव और दानवों ने आपसी सहयोग से रत्नाकर आर्थात समुद्र के गर्भ
में छिपी हूई अमूल्य सम्पंदा का दोहन करने का निश्चय किया |
मंदराचल पर्वत को मथनी, क्चछप् को आधार एवं वासुकी नाग
को मथनी की रस्सी बनाया| उसके मुख की तरफ दानव व पूंछ की तरफ
देवतागण उसे पकडकर उत्साह के साथ समुद्र मंथन के कार्य में जुट
गए| इन दोनों पक्षों की संगठनात्मक शक्ति के सामने समुद्र
को झुखना पढ़ा | उसमे से कुल १४ बहुमूल वस्तुए, जिन्हें रत्न
कहा गया, निकली| अंत में अमृत कुम्भ निकला | अमृत कलश
को दानवों से बचाने के लिए देवताओं ने इसकी सुरक्षा का दायित्व
बृहस्पति,चंद्रमा,सूर्य और शनि को सौप दिया|अमृत कलश प्राप्त
हो जाने से चारो और प्रसन्ता का वातावरण छा गया| देवता एवं दानव
दोनों अपनी अपनी थकावट भूल गए | देव एवं दानव दोनों पक्ष इस बात
में उलझ गए की अमृत कुम्भ- (कलश) का कैसे हरण किया जावे|
स्कन्दपुराण के अनुसार इन्द्र ने अपने युवा पुत्र जयंत को कलश
लेकर भागने का संकेत दिया| इस चाल को दानव समझ गए|
परिमाणस्वरूप देवता व दानवों में भयंकर संग्राम छिड़ गया| यह संग्राम
१२ दिन तक चला | देवताओं का एक दिन मनुष्यों के एक वर्ष के
बराबर होता है |आर्थात १२ वर्ष तक देव – दानवों का युद्ध चला |
इस युद्ध में अमृत कुम्भ की छिना झपटी में मृत्युलोक में अमृत की कुछ
बुँदे छलक पड़ी थी
वे चार स्थान प्रधान तीर्थ हरिद्वार , प्रयाग,
नासिक और उज्जैन है, इस संग्राम में दानवों ने इन्द्र पुत्र जयंत से
अमृत कलश छुडाने का असंभव प्रयास किया था, किन्तु देवताओं में
सूर्य ,गुरु और चंद्र के विशेष प्रयत्न से अमृत कलश सुरक्षित
रहा और और भगवान विष्णु ने मोहिनी का रूप धारण कर
दानवों को भ्रमित करके सारा अमृत देवताओं में वितरित कर दिया था |
सूर्य , चंद्रएवं गुरु के विशेष सहयोग से अमृत कलश सुरक्षित रहने के
कारण इन्ही ग्रहों की विशिष्ट स्थितियों में कुम्भ पर्व मनाने
की परम्परा है|
यह धार्मिक मान्यता है की अमृत कलश से
छलकी बूंदों से ये चारो तीर्थ और यहाँ की नदियॉं (गंगा, जमुना,
गोदावरी, एवं क्षिप्रा ) अमृतमय हो गई है| अमृत कलश से
हरिद्वार ,प्रयाग, नासिक, और उज्जैन में, अमृत बिंदु छलकाने के
समय जिन राशियों में सूर्य,चंद्र एवं गुरु की स्थिति उस विशिष्ट योग
के अवसर पर रहती है, तभी, वहाँ कुम्भ पूर्व इन राशियों में ग्रहों के
योग होने पर ही होते है|
“ कुम्भा भवति नान्यथा “
विशिष्ट युग में सूर्य ,चंद्र एवं गुरु
की स्थिति के अनुसार हरिद्वार,प्रयाग ,नासिक और उज्जैन में
ज्योतिष के मान से ग्रहों की स्थिति के अनुसार कुम्भ पर्व मनाये जाने
का उल्लेख विष्णु पुराण में मिलता है|
उज्जैन में सिंहस्थ महापर्व के संभंध में
सिंहस्थ माहात्म्य में इस प्रकार का प्रमाण में मिलता है|
कुशस्थली तीर्थवरम देवानामपिदुर्लभम |
माधवे धवले पक्षे सिंहे जीवेत्वजे रवौ||
तुला राशौ निशानाथे स्वतिभे पूर्णिमातीथो व्यतिपाते तु संप्राप्ते
चंद्रवासरसमयुते|
एतेन दश महायोगा: स्नानामुक्ति : फलप्रदा ||
१) अवन्तिका नगरी २) वैशाख मास ३) शुक्ल पक्ष ४
सिंह राशि में गुरु ५ तुला राशि में चंद्र ७स्वाति नक्षत्र, ८
पूर्णिमा तिथि ९ व्यातिपात १० सोमवार आदि ये दस पुण्य प्रद योग
होने परक्षिप्रा नदी में सिंहस्थ पर्व में स्नान करने पर मोक्ष
प्राप्ति होती है| ग्रहों की स्थिति ज्योतिष के मान से इनमे से अधिंकांश
योग तो’ प्रति वर्ष प्राप्त हो जाते है, परन्तु सिंह पर बृहस्पति १२
वर्ष में ही आते
संह्त्रम कार्तिके स्नानं माघे स्नानं शतानि च
वैशाखे नर्मदा कोटि: कुम्भ स्नानेन तत्फलं ||
अश्वमेघ सहस्त्राणि , वाजपेय शातानिच |
लक्षम प्रदक्षिणा भूमया: कुम्भ स्नानेनतत्फलं||
अर्थात हजारों स्नान कार्तिक में किये हो ,
सेकडो माघ मास में किये हो, करोड़ों बार नर्मदा के स्नान वैशाख में
किये हो वह फल एक बार कुम्भमें स्नान करने से मिलता है |
हजारों अश्वमेघ , सेकडों वाजपेय यज्ञ करने मेंतथा लाखो प्रदक्षिण
पृथ्वी की करनेसे जो फल मिलता है, वह कुम्भ पर्व के स्नान मात्र से
मिलता ह

उज्जैन दर्शन


उज्जैन दर्शन
उज्जैन का गौरव: महाकालेश्वर मंदिर उज्जैन के
महाकालेश्वर की मान्यता भारत के प्रमुख बारह
ज्योतिर्लिंगों में है। महाकालेश्वर मंदिर
का माहात्म्य विभिन्न पुराणों में विस्तृत रूप से
वर्णित है। महाकवि तुलसीदास से लेकर संस्कृत
साहित्य के अनेक प्रसिध्द कवियों ने इस मंदिर
का वर्णन किया है। लोक मानस में महाकाल
की परम्परा अनादि है। उज्जैन भारत
की कालगणना का केंद्र बिन्दु था और महाकाल
उज्जैन के अधिपति आदि देव माने जाते हैं। थी
इतिहास के प्रत्येक युग में-शुंग,कुशाण, सात वाहन,
गुप्त, परिहार तथा अपेक्षाकृत आधुनिक
मराठा काल में इस मंदिर का निरंतर जीर्णोध्दार
होता रहा है। वर्तमान मंदिर का पुनर्निर्माण
राणोजी सिंधिया के काल में मालवा के सूबेदार
रामचंद्र बाबा शेणवी द्वारा कराया गया था।
वर्तमान में भी जीर्णोध्दार एवं सुविधा विस्तार
का कार्य होता रहा है। महाकालेश्वर
की प्रतिमा दक्षिणमुखी है। तांत्रिक परम्परा में
प्रसिध्द दक्षिण मुखी पूजा का महत्व बारह
ज्योतिर्लिंगों में केवल महाकालेश्वर को ही प्राप्त
है। ओंकारेश्वर में मंदिर की ऊपरी पीठ पर महाकाल
मूर्ति कीतरह इस तरह मंदिर में भी ओंकारेश्वर
शिव की प्रतिष्ठा है। तीसरे खण्ड में नागचंद्रेश्वर
की प्रतिमा के दर्शन केवल नागपंचमी को होते है।
विक्रमादित्य और भोज की महाकाल पूजा के लिए
शासकीय सनदें महाकाल मंदिर को प्राप्त
होती रही है। वर्तमान में यह मंदिर महाकाल मंदिर
समिति के तत्वावधान में संरक्षित है।
श्री बडे गणेश मंदिर
श्री महाकालेश्वर मंदिर के निकट हरसिध्दि मार्ग
पर बडे गणेश की भव्य और कलापूर्ण
मूर्ति प्रतिष्ठित है। इस मूर्ति का निर्माण पद्
मविभूषण पं. सूर्यनारायण व्यास के पिता विख्यात
विद्वान स्व. पं. नारायण जी व्यास ने किया था।
मंदिर परिसर में सप्तधातु की पंचमुखी हनुमान
प्रतिमा के साथ-साथ नवग्रह मंदिर तथा कृष्ण
यशोदा आदि की प्रतिमाएं भी विराजित हैं।
मंगलनाथ मंदिर
पुराणों के अनुसार उज्जैन नगरी को मंगल
की जननी कहा जाता है। ऐसे
व्यक्ति जिनकी कुंडली में मंगल भारी रहता है, वे
अपने अनिष्ट ग्रहों की शांति के लिए यहाँ पूजा-
पाठ करवाने आते हैं। यूँ तो देश में मंगल भगवान के
कई मंदिर हैं, लेकिन उज्जैन इनका जन्मस्थान होने
के कारण यहाँ की पूजा को खास महत्व
दिया जाता है।कहा जाता है कि यह मंदिर
सदियों पुराना है। सिंधिया राजघराने में
इसका पुनर्निर्माण करवाया गया था। उज्जैन शहर
को भगवान महाकाल की नगरी कहा जाता है,
इसलिए यहाँ मंगलनाथ भगवान
की शिवरूपी प्रतिमा का पूजन किया जाता है। हर
मंगलवार के दिन इस मंदिर में श्रद्धालुओं
का ताँता लगा रहता है।
हरसिध्दि
उज्जैन नगर के प्राचीन और महत्वपूर्ण धार्मिक
स्थलों में हरसिध्दि देवी का मंदिर प्रमुख है।
चिन्तामण गणेश मंदिर से थोडी दूर और रूद्रसागर
तालाब के किनारे स्थित इस मंदिर में सम्राट
विक्रमादित्य
द्वारा हरसिध्दि देवी की पूजा की जाती थी।
हरसिध्दि देवी वैष्णव संप्रदाय की आराध्य रही।
शिवपुराण के अनुसार दक्ष यज्ञ के बाद
सती की कोहनी यहां गिरी थी।
क्षिप्रा घाट
उज्जैन नगर के धार्मिक स्वरूप में क्षिप्रा नदी के
घाटों का प्रमुख स्थान है। नदी के दाहिने किनारे,
जहां नगर स्थित है, पर बने ये घाट
स्थानार्थियों के लिये सीढीबध्द हैं। घाटों पर
विभिन्न देवी-देवताओं के नये-पुराने मंदिर भी है।
क्षिप्रा के इन घाटों का गौरव सिंहस्थ के दौरान
देखते ही बनता है, जब लाखों-करोडों श्रध्दालु
यहां स्नान करते हैं।
गोपाल मंदिर
गोपाल मंदिर उज्जैन नगर का दूसरा सबसे
बडा मंदिर है।यह मंदिर नगर के मध्य व्यस्ततम
क्षेत्र में स्थित है। मंदिर का निर्माण
महाराजा दौलतराव सिंधिया की महारानी बायजा बाई
ने सन् 1833 के आसपास कराया था। मंदिर में
कृष्ण (गोपाल) प्रतिमा है। मंदिर के चांदी के द्वार
यहां का एक अन्य आकर्षण हैं।
गढकालिका देवी
गढकालिका देवी का यह मंदिर आज के उज्जैन नगर
में प्राचीन अवंतिका नगरी क्षेत्र में है।
कालयजी कवि कालिदास गढकालिका देवी के
उपासक थे। इस प्राचीन मंदिर का सम्राट
हर्षवर्धन द्वारा जीर्णोध्दार कराने का उल्लैख
मिलता है।गढ़ कालिका के मंदिर में माँ कालिका के
दर्शन के लिए रोज हजारों भक्तों की भीड़
जुटती है। तांत्रिकों की देवी कालिका के इस
चमत्कारिक मंदिर की प्राचीनता के विषय में कोई
नहीं जानता, फिर भी माना जाता है
कि इसकी स्थापना महाभारतकाल में हुई थी, लेकिन
मूर्ति सतयुग के काल की है। बाद में इस प्राचीन
मंदिर का जीर्णोद्धार सम्राट हर्षवर्धन
द्वारा किए जाने का उल्लेख मिलता है। स्टेटकाल
में ग्वालियर के महाराजा ने इसका पुनर्निर्माण
कराया।
भर्तृहरि गुफा
भर्तृहरि की गुफा ग्यारहवीं सदी के एक मंदिर
का अवशेष है, जिसका उत्तरवर्ती दोर में
जीर्णोध्दार होता रहा ।
काल भैरव
काल भैरव मंदिर आज के उज्जैन नगर में स्थित
प्राचीन अवंतिका नगरी के क्षेत्र में स्थित है। यह
स्थल शिव के उपासकों के कापालिक सम्प्रदाय से
संबंधित है। मंदिर के अंदर काल भैरव की विशाल
प्रतिमा है।

उज्जैन महाकुम्भ का इतिहास

सिंहस्थ २०१६
उज्जैन धार्मिक अस्थाओ व परंपरा के सम्मलेन का एक अनूठा शहर
जो कि न केवल भारत अपितु समस्त संसार कि धार्मिक अस्थाओ
का केंद्र कहा जा सकता है यह वह पवित्र नगरी है जहा ८४ महादेव,
सात सागर,९ नारायण ,२ शक्ति पीठो के साथ विश्व मै १२
जोतिलिंगो मै से एक राजाधिराज महाकालेश्वर विराजमान है यह वह
पवन नगरी है जिसमें गीता जैसे महान ग्रन्थ के उद्बोधक श्री कृष्ण
स्वयं शिक्षा लेने आए अपने पैरों कि धुल से पाषणों को भी जीवटी कर
देने वाले प्रभु श्री राम स्वयम अपने पिता तर्पण करने शिप्रा तट पर
आए यही वह स्थान है जो कि रामघाट कहलाता है इस प्रकार विश्व के
एक मात्र राजा जिसने कि सम्पुर्ण भारत वर्ष के प्रत्यक नागरिक
को कर्ज मुख्त कर दिया वह महान शासक विक्रमादित्य उज्जैन
कि हि पवन भूमि पर जन्मे | पवन
सलिला मुक्तिदायिनी माँ शिप्रा यही पर प्रवाहित होती है एवं विश्व
का सबसे बड़ा महापर्व महाकुम्ब /सिंहस्थ मेला विश्व के ४ स्थान मै
से एक उज्जैन नगर मै लगता है इस नगरी कि महात्मा वर्णन
करना उतना हि कठिन है जितना कि आकाश मै
तारा गानों कि गिनती करना जय श्री महाकाल !!!
सिंहस्थ (कुम्भ) हमारी धार्मिक एवं
आध्यात्मिक चेतना का महा पर्व है| सनातन कल से यह संसार
का सबसे बढ़ा मेला कहा जा सकता है| पुराणोंमें कुम्भ पर्व मनाये जाने
के संभंध में कई कथाएँ है| सबसेप्रामाणिक कथा समुद्र मंथन की है |
देव और दानवों ने आपसी सहयोग से रत्नाकर आर्थात समुद्र के गर्भ
में छिपी हूई अमूल्य सम्पंदा का दोहन करने का निश्चय किया |
मंदराचल पर्वत को मथनी, क्चछप् को आधार एवं वासुकी नाग
को मथनी की रस्सी बनाया| उसके मुख की तरफ दानव व पूंछ की तरफ
देवतागण उसे पकडकर उत्साह के साथ समुद्र मंथन के कार्य में जुट
गए| इन दोनों पक्षों की संगठनात्मक शक्ति के सामने समुद्र
को झुखना पढ़ा | उसमे से कुल १४ बहुमूल वस्तुए, जिन्हें रत्न
कहा गया, निकली| अंत में अमृत कुम्भ निकला | अमृत कलश
को दानवों से बचाने के लिए देवताओं ने इसकी सुरक्षा का दायित्व
बृहस्पति,चंद्रमा,सूर्य और शनि को सौप दिया|अमृत कलश प्राप्त
हो जाने से चारो और प्रसन्ता का वातावरण छा गया| देवता एवं दानव
दोनों अपनी अपनी थकावट भूल गए | देव एवं दानव दोनों पक्ष इस बात
में उलझ गए की अमृत कुम्भ- (कलश) का कैसे हरण किया जावे|
स्कन्दपुराण के अनुसार इन्द्र ने अपने युवा पुत्र जयंत को कलश
लेकर भागने का संकेत दिया| इस चाल को दानव समझ गए|
परिमाणस्वरूप देवता व दानवों में भयंकर संग्राम छिड़ गया| यह संग्राम
१२ दिन तक चला | देवताओं का एक दिन मनुष्यों के एक वर्ष के
बराबर होता है |आर्थात १२ वर्ष तक देव – दानवों का युद्ध चला |
इस युद्ध में अमृत कुम्भ की छिना झपटी में मृत्युलोक में अमृत की कुछ
बुँदे छलक पड़ी थी
वे चार स्थान प्रधान तीर्थ हरिद्वार , प्रयाग,
नासिक और उज्जैन है, इस संग्राम में दानवों ने इन्द्र पुत्र जयंत से
अमृत कलश छुडाने का असंभव प्रयास किया था, किन्तु देवताओं में
सूर्य ,गुरु और चंद्र के विशेष प्रयत्न से अमृत कलश सुरक्षित
रहा और और भगवान विष्णु ने मोहिनी का रूप धारण कर
दानवों को भ्रमित करके सारा अमृत देवताओं में वितरित कर दिया था |
सूर्य , चंद्रएवं गुरु के विशेष सहयोग से अमृत कलश सुरक्षित रहने के
कारण इन्ही ग्रहों की विशिष्ट स्थितियों में कुम्भ पर्व मनाने
की परम्परा है|
यह धार्मिक मान्यता है की अमृत कलश से
छलकी बूंदों से ये चारो तीर्थ और यहाँ की नदियॉं (गंगा, जमुना,
गोदावरी, एवं क्षिप्रा ) अमृतमय हो गई है| अमृत कलश से
हरिद्वार ,प्रयाग, नासिक, और उज्जैन में, अमृत बिंदु छलकाने के
समय जिन राशियों में सूर्य,चंद्र एवं गुरु की स्थिति उस विशिष्ट योग
के अवसर पर रहती है, तभी, वहाँ कुम्भ पूर्व इन राशियों में ग्रहों के
योग होने पर ही होते है|
“ कुम्भा भवति नान्यथा “
विशिष्ट युग में सूर्य ,चंद्र एवं गुरु
की स्थिति के अनुसार हरिद्वार,प्रयाग ,नासिक और उज्जैन में
ज्योतिष के मान से ग्रहों की स्थिति के अनुसार कुम्भ पर्व मनाये जाने
का उल्लेख विष्णु पुराण में मिलता है|
उज्जैन में सिंहस्थ महापर्व के संभंध में
सिंहस्थ माहात्म्य में इस प्रकार का प्रमाण में मिलता है|
कुशस्थली तीर्थवरम देवानामपिदुर्लभम |
माधवे धवले पक्षे सिंहे जीवेत्वजे रवौ||
तुला राशौ निशानाथे स्वतिभे पूर्णिमातीथो व्यतिपाते तु संप्राप्ते
चंद्रवासरसमयुते|
एतेन दश महायोगा: स्नानामुक्ति : फलप्रदा ||
१) अवन्तिका नगरी २) वैशाख मास ३) शुक्ल पक्ष ४
सिंह राशि में गुरु ५ तुला राशि में चंद्र ७स्वाति नक्षत्र, ८
पूर्णिमा तिथि ९ व्यातिपात १० सोमवार आदि ये दस पुण्य प्रद योग
होने परक्षिप्रा नदी में सिंहस्थ पर्व में स्नान करने पर मोक्ष
प्राप्ति होती है| ग्रहों की स्थिति ज्योतिष के मान से इनमे से अधिंकांश
योग तो’ प्रति वर्ष प्राप्त हो जाते है, परन्तु सिंह पर बृहस्पति १२
वर्ष में ही आते
संह्त्रम कार्तिके स्नानं माघे स्नानं शतानि च
वैशाखे नर्मदा कोटि: कुम्भ स्नानेन तत्फलं ||
अश्वमेघ सहस्त्राणि , वाजपेय शातानिच |
लक्षम प्रदक्षिणा भूमया: कुम्भ स्नानेनतत्फलं||
अर्थात हजारों स्नान कार्तिक में किये हो ,
सेकडो माघ मास में किये हो, करोड़ों बार नर्मदा के स्नान वैशाख में
किये हो वह फल एक बार कुम्भमें स्नान करने से मिलता है |
हजारों अश्वमेघ , सेकडों वाजपेय यज्ञ करने मेंतथा लाखो प्रदक्षिण
पृथ्वी की करनेसे जो फल मिलता है, वह कुम्भ पर्व के स्नान मात्र से
मिलता ह