Tuesday 8 September 2015

Ujjain (Simhastha) Mahakumbh 2016 Schedule and Important Dates

Ujjain (Simhastha) Mahakumbh 2016 Schedule and Important Dates

22 April 2016Mahakumbh Start
01 May 2016Pancheshani Yatra Start
03 May 2016Yatra Ka Samapan (end date of yatra)
06 May 2016Mesh ka Surya + Chandra ke sath simhs ke guru ka yog
09 May 2016Akshaya Tritiya
11 May 2016Shankracharya Jayanti
17 May 2016Mohini Ekadashi
19 May 2016Pradosh
21 May 2016Pramukh Shahi Snan (Main Bathing Date)

Friday 21 August 2015

''नागचंद्रेश्वर मंदिर''

 ஜ۩ॐ۩ஜ "जय श्री महाकाल" ஜ۩ॐ۩ஜ
''नागचंद्रेश्वर मंदिर''......एक अद्भुत मंदिर जो वर्ष में सिर्फ ''नागपंचमी'' के ही दिन २४ घंटे के लिए खुलता है''...
मध्य प्रदेश की धार्मिक श्री महाकाल की नगरी उज्जैन में एक दुर्लभ मंदिर है; ‘’नागचन्द्रेश्वर मंदिर’’।
श्री महाकालेश्वर मंदिर शिखर के तीसरे तल पर ११वी शताब्दी की परमारकालीन प्रतिमा नाग के आसन पर स्थित शिव पार्वती की सुन्दर प्रतिमा है। छत्र के रूप में नाग का फन फैला हुआ है।
दिनांक १९/०८/२०१४ को नागपंचमी के शुभ पर्व पर वर्ष में एक बार खुलने वाले भगवान् श्री महाकालेश्वर के दुसरे तल पर स्थित श्री नागचंद्रेश्वर महादेव मंदिर के पट दिनांक १८/०८/२०१५ को रात्रि १२:०० बजे खुलेंगे तथा पूजन पश्चात दर्शनार्थी दर्शन कर सकेंगे। यह पट दिनांक १९/०८/२०१४ को रात्रि १२:०० बजे तक खुले रहेंगे।
किन्तु दिनांक १९/०८/२०१४ को रात्री १०:३० बजे तक श्री नागचंद्रेश्वर के दर्शन हेतु मंदिर परिसर में प्रवेश पा सकेंगे।
नागपंचमी के शुभ पर्व पर भगवान् नागचंद्रेश्वर की त्रिकाल पूजा होगी....
प्रथम पूजा दिनांक १९/०८/२०१४ को रात्रि १२:०० बजे महंत, कलेक्टर, समिति अध्यक्ष द्वारा होगी।
द्वितीय पूजा दिनांक १९/०८/२०१४ को शासकीय पूजा अपरान्ह १२:०० बजे होगी।
तृतीय पूजा दिनांक १९/०८/२०१४ को श्री महाकालेश्वर प्रबंध समिति द्वारा रात्रि ०८:०० बजे होगी।
नागपंचमी के दिन इस प्रतिमा के दर्शन के बाद ही भक्तजन नाचंद्रेश्वर महादेव के दर्शन वर्ष में एक बार ही करते हैं।
इसका पट साल में केवल एक दिन खुलता अर्थात श्रावण शुक्ल पंचमी यानि की नाग पंचमी के दिन ही खुलते हैं।
प्राचीनकाल से शिव की नगरी के रुप में पहचाने जाने वाले उज्जैन में विशाल परिसर में स्थित, यह मंदिर तीन खंडो में विभक्त है। सबसे नीचे खंड में भगवान महाकालेश्वर, दूसरे खंड में ओकारेश्वर और तीसरे खंड में दुर्लभ भगवान नागचंद्रेश्वर का मंदिर है।
नागचंद्रेश्वर मंदिर में प्रतिमा के आसन में शिव-पार्वती की सुन्दर प्रतिमा स्थित है जिसमें छत्र के रुप में नाग का फन फैला हुआ है। नागपंचमी के दिन इस प्रतिमा के दर्शन के बाद ही भक्तजन नागचंद्रेश्वर महादेव के दर्शन करते है।
यह प्रतिमा पड़ोसी देश नेपाल से यहां लायी गयी तथा यहां पर श्रीलक्ष्मी माता एवं शंकर पार्वती की नंदी पर विराजित प्रतिमा भी लायी गयी जो मंदिर के दूसरे तल पर स्थित है। नागचंद्रेश्वर के साथ इनका भी पूजन नागपंचमी के दिन किया जाता है।
इस मंदिर की सर्वप्रथम पूजा महानिर्वाणी अखाड़े के संतों द्वारा और इसके बाद दोपहर में शासकीय और रात में महाकालेश्वर मंदिर प्रबंध समिति की तरफ से पूजा की जाती है।
लगभग 60 फीट ऊंचाई वाले इस मंदिर में पहुचने के लियें प्राचीन में इसका रास्ता संकरा और अंधेरा वाला होने से एक समय में एक ही व्यक्ति चढ़ सकता था, लेकिन दो दशक से अधिक समय पूर्व मंदिर में दर्शनार्थियो की बढती संख्या को देखते हुए मंदिर प्रबंध समिति और जिला प्रशासन ने लोहे की सीढियां का रास्ता अलग से बना दिया है।
हिंदू मान्यताओं के अनुसार सर्प भगवान शिव का कंठाहार और भगवान विष्णु का आसन है लेकिन यह विश्व का संभवत:एकमात्र ऐसा मंदिर है जहां भगवान शिव, माता पार्वती एवं उनके पुत्र गणेशजीको सर्प सिंहासन पर आसीन दर्शाया गया है। इस मंदिर के दर्शनों के लिए नागपंचमी के दिन सुबह से ही लोगों की लम्बी कतारे लग जाती है|
यह देश का अकेला ऐसा नाग मंदिर है, जिसके पट नागपंचमी के दिन 24 घंटे के लिए खुलते हैं। मान्यता है कि इस मंदिर मे दर्शन व पूजा-अर्चना करने से तमाम कष्टों से मुक्ति मिल जाती है।
भगवान भोलेनाथ को अर्पित फूल व बिल्वपत्र को लांघने से मनुष्य को दोष लगता है। कहते हैं कि; भगवान नागचंद्रेश्वर के दर्शन करने से यह दोष मिट जाता है| महाकाल की नगरी में देवता भी अछूते नहीं रहे, वह भी इस दोष से बचने के लिए नागचंद्रेश्वर का दर्शन करते हैं, ऐसा धर्मग्रंथों में उल्लेख है।
भगवान नागचंद्रेश्वर को नारियल अर्पित करने की परंपरा है। पंचक्रोशी यात्री भी नारियल की भेंट चढ़ाकर भगवान से बल प्राप्त करते हैं और यात्रा पूरी होने पर मिट्टी के अश्व अर्पित कर उनका बल लौटाते हैं।
मान्यता है कि सर्पो के राजा तक्षक ने भगवान भोलेनाथ की यहां घनघोर तपस्या की थी। तपस्या से भगवान शिव प्रसन्न हुए और तक्षक को अमरत्व का वरदान दिया। ऐसा माना जाता है कि उसके बाद से तक्षक नाग यहां विराजित है, जिस पर शिव और उनका परिवार आसीन है। एकादशमुखी नाग सिंहासन पर बैठे भगवान शिव के हाथ-पांव और गले में सर्प लिपटे हुए है।
मान्यता है कि नागचंद्रेश्वर मंदिर में नागपंचमी के दिन विशेषपूजा करने से कालसर्प योग से मुक्ति मिलती है।
HAR HAR MAHADEV
-Deepak Parashar
FB/JSM

''नागचंद्रेश्वर मंदिर''......एक अद्भुत मंदिर जो वर्ष में सिर्फ ''नागपंचमी'' के ही दिन २४ घंटे के लिए खुलता है''.

ल में सिर्फ 24 घंटे के लिए खुलता है प्राचीन व दुर्लभ नागचंद्रेश्वर महादेव मंदिर, 1.5 लाख भक्तों ने किए दर्शन
नागपंचमी महापर्व के अवसर पर देश व दुनियाभर में प्रसिद्ध उज्जैन के ज्योतिर्लिंग महाकालेश्वर मंदिर के शिखर पर स्थित प्राचीन व दुर्लभ नागचंद्रेश्वर महादेव मंदिर के पट मंगलवार की मध्य रात 12.30 बजे खोले गए। यह मंदिर हर साल नागपंचमी के मौके पर सिर्फ एक दिन (24 घंटे) के लिए खोला जाता है।परंपरा अनुसार पंचायती महानिर्वाणी अखाड़े के महंत प्रकाशपुरी महाराज, अवधेश पुरी महाराज, कलेक्टर कवींद्र कियावत ने मंदिर में प्रथम पूजा की।

तृतीया श्रावण सोमवार~ ''श्री महाकाल राजा तृतीया श्रावण पालकी''


तृतीया श्रावण सोमवार~ ''श्री महाकाल राजा तृतीया श्रावण पालकी''


तृतीया श्रावण सोमवार~ ''श्री महाकाल राजा तृतीया श्रावण पालकी''


तृतीया श्रावण सोमवार~ ''श्री महाकाल राजा तृतीया श्रावण पालकी''


Tuesday 11 August 2015

द्वितीय श्रावण सोमवार~ ''श्री महाकाल राजा द्वितीय श्रावण पालकी'' १०/०८/२०१५

बाबा श्री महाकालेश्वर ''श्री चंद्रमौलेश्वर स्वरुप'' चांदी की पालकी में एवं श्री मनमहेश हाथी पर विराजित होकर नगर भ्रमण पर निकले।

द्वितीय श्रावण सोमवार~ ''श्री महाकाल राजा द्वितीय श्रावण पालकी'' १०/०८/२०१५

बाबा श्री महाकालेश्वर ''श्री चंद्रमौलेश्वर स्वरुप'' चांदी की पालकी में एवं श्री मनमहेश हाथी पर विराजित होकर नगर भ्रमण पर निकले।

द्वितीय श्रावण सोमवार~ ''श्री महाकाल राजा द्वितीय श्रावण पालकी'' १०/०८/२०१५

द्वितीय श्रावण सोमवार~ ''श्री महाकाल राजा द्वितीय श्रावण पालकी'' १०/०८/२०१५ बाबा श्री महाकालेश्वर ''श्री चंद्रमौलेश्वर स्वरुप'' चांदी की पालकी में एवं श्री मनमहेश हाथी पर विराजित होकर नगर भ्रमण पर निकले।

द्वितीय श्रावण सोमवार~ ''श्री महाकाल राजा द्वितीय श्रावण पालकी'' १०/०८/२०१५

बाबा श्री महाकालेश्वर ''श्री चंद्रमौलेश्वर स्वरुप'' चांदी की पालकी में एवं श्री मनमहेश हाथी पर विराजित होकर नगर भ्रमण पर निकले।

Tuesday 4 August 2015

बाबा महाकाल की प्रथम शाही सवारी 2015

local news paper

महेश्वर श्रवण मास


बाबा बैजनाथ आगर


बाबा महाकाल की प्रथम शाही सवारी 2015

: local news paper 

बाबा महाकाल की प्रथम शाही सवारी 2015

बाबा महाकाल की शाही सवारी

बाबा महाकाल की प्रथम शाही सवारी 2015

बाबा महाकाल की शाही सवारी

बाबा महाकाल की प्रथम शाही सवारी 2015

बाबा महाकाल की शाही सवारी

बाबा महाकाल की प्रथम शाही सवारी 2015

बाबा महाकाल की शाही सवारी

बाबा महाकाल की प्रथम शाही सवारी 2015

बाबा महाकाल की शाही सवारी

Sunday 26 July 2015

सूर्य को ऐसे चढ़ाएं जल, मिलता है मान-सम्मान

विवार सूर्य देव की उपासना का विशेष दिन है। कुण्डली में सूर्य का अच्छा या बुरा असर बुद्धि पर भी होता है। साथ ही, सूर्य की शुभ स्थिति समाज में मान-सम्मान भी दिलवाती है। यदि आप भी सूर्य से शुभ फल पाना चाहते हैं तो यहां बताए जा रहे उपाय रविवार को कर सकते हैं...
1. सुबह स्नान के बाद भगवान सूर्य को जल अर्पित करें। इसके लिए तांबे के लोटे में जल भरे, इसमें चावल, फूल डालकर सूर्य को अर्घ्य दें।
2. जल अर्पित करने के बाद सूर्य मंत्र स्तुति का पाठ करें। इस पाठ के साथ शक्ति, बुद्धि, स्वास्थ्य और सम्मान की कामना से करें।
सूर्य मंत्र स्तुति
नमामि देवदेवशं भूतभावनमव्ययम्। 
दिवाकरं रविं भानुं मार्तण्डं भास्करं भगम्।।
इन्दं विष्णुं हरिं हंसमर्कं लोकगुरुं विभुम्। 
त्रिनेत्रं त्र्यक्षरं त्र्यङ्गं त्रिमूर्तिं त्रिगतिं शुभम्।।
3. इस प्रकार सूर्य की आराधना करने के बाद धूप, दीप से सूर्य देव का पूजन करें।
4. सूर्य से संबंधित चीजें जैसे तांबे का बर्तन, पीले या लाल वस्त्र, गेहूं, गुड़, माणिक्य, लाल चंदन आदि का दान करें। अपनी श्रद्धानुसार इन चीजों में से किसी भी चीज का दान किया जा सकता है।
5. सूर्य के निमित्त व्रत करें। एक समय फलाहार करें और सूर्यदेव का पूजन करें।

अपनी भारत की संस्कृति को पहचाने.


📜😇( ०१ ) दो पक्ष-
कृष्ण पक्ष ,
शुक्ल पक्ष !
📜😇( ०२ ) तीन ऋण -
देव ऋण ,
पितृ ऋण ,
ऋषि ऋण !
📜😇( ०३ ) चार युग -
सतयुग ,
त्रेतायुग ,
द्वापरयुग ,
कलियुग !
📜😇( ०४ ) चार धाम -
द्वारिका ,
बद्रीनाथ ,
जगन्नाथ पुरी ,
रामेश्वरम धाम !
📜😇( ०५ ) चारपीठ -
शारदा पीठ ( द्वारिका )
ज्योतिष पीठ ( जोशीमठ बद्रिधाम )
गोवर्धन पीठ ( जगन्नाथपुरी ) ,
शृंगेरीपीठ !
📜😇( ०६ ) चार वेद-
ऋग्वेद ,
अथर्वेद ,
यजुर्वेद ,
सामवेद !
📜😇( ०७ ) चार आश्रम -
ब्रह्मचर्य ,
गृहस्थ ,
वानप्रस्थ ,
संन्यास !
📜😇( ०८ ) चार अंतःकरण -
मन ,
बुद्धि ,
चित्त ,
अहंकार !
📜😇( ०९ ) पञ्च गव्य -
गाय का घी ,
दूध ,
दही ,
गोमूत्र ,
गोबर !
📜😇( १० ) पञ्च देव -
गणेश ,
विष्णु ,
शिव ,
देवी ,
सूर्य !
📜😇( ११ ) पंच तत्त्व -
पृथ्वी ,
जल ,
अग्नि ,
वायु ,
आकाश !
📜😇( १२ ) छह दर्शन -
वैशेषिक ,
न्याय ,
सांख्य ,
योग ,
पूर्व मिसांसा ,
दक्षिण मिसांसा !
📜😇( १३ ) सप्त ऋषि -
विश्वामित्र ,
जमदाग्नि ,
भरद्वाज ,
गौतम ,
अत्री ,
वशिष्ठ और कश्यप!
📜😇( १४ ) सप्त पुरी -
अयोध्या पुरी ,
मथुरा पुरी ,
माया पुरी ( हरिद्वार ) ,
काशी ,
कांची
( शिन कांची - विष्णु कांची ) ,
अवंतिका और
द्वारिका पुरी !
📜😇( १५ ) आठ योग -
यम ,
नियम ,
आसन ,
प्राणायाम ,
प्रत्याहार ,
धारणा ,
ध्यान एवं
समािध !
📜😇( १६ ) आठ लक्ष्मी -
आग्घ ,
विद्या ,
सौभाग्य ,
अमृत ,
काम ,
सत्य ,
भोग ,एवं
योग लक्ष्मी !
📜😇( १७ ) नव दुर्गा --
शैल पुत्री ,
ब्रह्मचारिणी ,
चंद्रघंटा ,
कुष्मांडा ,
स्कंदमाता ,
कात्यायिनी ,
कालरात्रि ,
महागौरी एवं
सिद्धिदात्री !
📜😇( १८ ) दस दिशाएं -
पूर्व ,
पश्चिम ,
उत्तर ,
दक्षिण ,
ईशान ,
नैऋत्य ,
वायव्य ,
अग्नि
आकाश एवं
पाताल !
📜😇( १९ ) मुख्य ११ अवतार -
मत्स्य ,
कच्छप ,
वराह ,
नरसिंह ,
वामन ,
परशुराम ,
श्री राम ,
कृष्ण ,
बलराम ,
बुद्ध ,
एवं कल्कि !
📜😇( २० ) बारह मास -
चैत्र ,
वैशाख ,
ज्येष्ठ ,
अषाढ ,
श्रावण ,
भाद्रपद ,
अश्विन ,
कार्तिक ,
मार्गशीर्ष ,
पौष ,
माघ ,
फागुन !
📜😇( २१ ) बारह राशी -
मेष ,
वृषभ ,
मिथुन ,
कर्क ,
सिंह ,
कन्या ,
तुला ,
वृश्चिक ,
धनु ,
मकर ,
कुंभ ,
कन्या !
📜😇( २२ ) बारह ज्योतिर्लिंग -
सोमनाथ ,
मल्लिकार्जुन ,
महाकाल ,
ओमकारेश्वर ,
बैजनाथ ,
रामेश्वरम ,
विश्वनाथ ,
त्र्यंबकेश्वर ,
केदारनाथ ,
घुष्नेश्वर ,
भीमाशंकर ,
नागेश्वर !
📜😇( २३ ) पंद्रह तिथियाँ -
प्रतिपदा ,
द्वितीय ,
तृतीय ,
चतुर्थी ,
पंचमी ,
षष्ठी ,
सप्तमी ,
अष्टमी ,
नवमी ,
दशमी ,
एकादशी ,
द्वादशी ,
त्रयोदशी ,
चतुर्दशी ,
पूर्णिमा ,
अमावास्या !
📜😇( २४ ) स्मृतियां -
मनु ,
विष्णु ,
अत्री ,
हारीत ,
याज्ञवल्क्य ,
उशना ,
अंगीरा ,
यम ,
आपस्तम्ब ,
सर्वत ,
कात्यायन ,
ब्रहस्पति ,
पराशर ,
व्यास ,
शांख्य ,
लिखित ,
दक्ष ,
शातातप ,
वशिष्ठ !
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Saturday 25 July 2015

सिंहस्थ महाकुंभ उज्जैन 2016 – प्रस्तावित स्नान तिथियां


चैत्र शुक्ल पूर्णिमा – वैशाख शुक्ल पूर्णिमा, विक्रम संवत 2073

पर्व स्नान
निर्धारित तिथि (दिन)
पर्व का आरंभ स्नान
चैत्र शुक्ल 15, दिनांक 22 अप्रैल, 2016 (शुक्रवार)
वार्षिक पंचेशानि यात्रा
वैशाख कृष्ण 9, दिनांक 1 मई, 2016 (रविवार) से वैशाख कृष्ण 30, दिनांक 6 मई, 2016 (शुक्रवार) तक
व्रतपर्व वरुथिनी एकादशी व्रत
वैशाख कृष्ण 11, दिनांक 3 मई, 2016 (मंगलवार)
स्नानपर्व
वैशाख कृष्ण 30, दिनांक 6 मई, 2016 (शुक्रवार)
स्नानपर्व अक्षय तृतीया
वैशाख शुक्ल 3, दिनांक 09 मई, 2016 (सोमवार)
शंकराचार्य जयंती
वैशाख शुक्ल 5, दिनांक 11 मई, 2016 (बुधवार)
वृषभ संक्रान्ति पर्व
वैशाख शुक्ल 9, दिनांक 15 मई, 2016 (रविवार)
मोहिनी एकादशी पर्व
वैशाख शुक्ल 11, दिनांक 17 मई, 2016 (मंगलवार)
प्रदोष पर्व
वैशाख शुक्ल 13, दिनांक 19 मई, 2016 (गुरुवार)
नृसिंह जयंती पर्व
वैशाख शुक्ल 14, दिनांक 20 मई, 2016 (शुक्रवार)
प्रमुख स्नान
वैशाख शुक्ल 15, दिनांक 21 मई, 2016 (शनिवार)

वेदों में सिंहस्थ महाकुंभ का महत्व

वैदिक जीवन पद्धति कुंभ जैसे आयोजनों का आदर्श रही है। देश को सांस्कृतिक एकसूत्रता में बांधने के लिए चारों कोनों में पीठों की स्थापना करने वाले आदिशंकराचार्य भी वैदिक जीवन के ही प्रचारक थे, इसलिए यह जानना दिलचस्प होगा कि कुंभ जैसे आयोजनों के बारें में वेदों में क्या कहा गया है। वैदिक स्थापनाओं से यह तो स्पष्ट है कि ऐसे आयोजन तब भी होते थे और बाद में आदिशंकराचार्य ने फिर से इस परम्परा को आगे बढ़ाया। वैदिक संस्कृति में जहां व्यक्ति की साधना, आराधना और जीवन पद्धति को परिष्कृत करने पर जोर दिया है, वहीं पवित्र तीर्थस्थलों और उनमें घटित होने वाले पर्वों व महापर्वों के प्रति आदर, श्रद्धा और भक्ति का पावन भाव प्रतिष्ठित करना भी प्रमुख रहा है। विश्व प्रसिद्ध सिंहस्थ महाकुंभ एक धार्मिक, आध्यात्मिक और सांस्कृतिक महापर्व है, जहां आकर व्यक्ति को आत्मशुद्धि और आत्मकल्याण की अनुभूति होती है। सिंहस्थ महाकुंभ महापर्व पर देश और विदेश के भी साधु-महात्माओं, सिद्ध-साधकों और संतों का आगमन होता है। इनके सानिध्य में आकर लोग अपने लौकिक जीवन की समस्याओं का समाधान खोजते हैं। इसके साथ ही अपने जीवन को ऊध्र्वगामी बनाकर मुक्ति की कामना भी करता है। मुक्ति को अर्थ ही बंनधमुक्त होना है और मोह का समाप्त होना ही बंधनमुक्त होना अर्थात् मोक्ष प्राप्त करना है। धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष के चार पुरुषार्थों में मोक्ष ही अंतिम मंजिल है। ऐसे महापर्वों में ऋषिमुनि अपनी साधना छोड़कर जनकल्याण के लिए एकत्रित होते हैं। वे अपने अनुभव और अनुसंधान से प्राप्त परिणामों से जिज्ञासाओं को सहज ही लाभान्वित कर देते हैं। इस सारी पृष्ठभूमि का आशय यह है कि कुंभ-सिंहस्थ महाकुंभ जैसे आयोजन चाहे स्वरस्फूर्त ही हों, लेकिन वह उच्च आध्यात्मिक चिन्तन का परिणाम है और उसका सुविचारित ध्येय भी है। ऋग्वेद में कहा गया है -
जधानवृतं स्वधितिर्वनेव स्वरोज पुरो अरदन्न सिन्धून्।
विभेद गिरी नव वभिन्न कुम्भभा गा इन्द्रो अकृणुत स्वयुग्भिः।।
कुंभ पर्व में जाने वाला मनुष्य स्वयं दान-होमादि सत्कर्मों के फलस्वरूप अपने पापों को वैसे ही नष्ट करता है जैसे कुठार वन को काट देता है। जैसे गंगा अपने तटों को काटती हुई प्रवाहित होती है, उसी प्रकार कुंभ पर्व मनुष्य के पूर्व संचित कर्मों से प्राप्त शारीरिक पापों को नष्ट करता है और नूतन (कच्चे) घड़े की तरह बादल को नष्ट-भ्रष्ट कर संसार में सुवृष्टि प्रदान करता है।
कुम्भी वेद्या मा व्यधिष्ठा यज्ञायुधैराज्येनातिषित्का। (ऋग्वेद)
अर्थात्, हे कुम्भ-पर्व तुम यज्ञीय वेदी में यज्ञीय आयुधों से घृत द्वारा तृप्त होने के कारण कष्टानुभव मत करो।
युवं नदा स्तुवते पज्रियाय कक्षीवते अरदतं पुरंधिम्।
करोतराच्छफादश्वस्य वृष्णः शतं कुम्भां असिंचतसुरायाः।। (ऋग्वेद)
कुम्भो वनिष्ठुर्जनिता शचीभिर्यस्मिन्नग्रे योग्यांगमर्भो अन्तः।
प्लाशिव्र्यक्तः शतधारउत्सो दुहे न कुम्भी स्वधं पितृभ्यः।। (शुक्ल यजुर्वेद)
कुम्भ-पर्व सत्कर्म के द्वारा मनुष्य को इस लोक में शारीरिक सुख देने वाला और जन्मान्तरों में उत्कृष्ट सुखों को देने वाला है।
आविशन्कलशूं सुतो विश्वा अर्षन्नाभिश्रिचः इन्दूरिन्द्रायधीयतो। (सामवेद)
पूर्ण कुम्भोडधि काल आहितस्तं वै पश्चामो बहुधानु सन्तः।
स इमा विश्वा भुवनानिप्रत्यकालं तमाहूः परमे व्योमन। (अथर्ववेद)
हे सन्तगण! पूर्णकुम्भ बारह वर्ष के बाद आया करता है, जिसे हम अनेक बार प्रयागादि तीर्थों में देखा करते हैं। कुम्भ उस समय को कहते हैं जो महान् आकाश में ग्रह-राशि आदि के योग से होता है।
चतुरः कुम्भांश्चतुर्धा ददामि। (अथर्ववेद)
ब्रह्मा कहते हैं-हे मनुष्यों! मैं तुम्हें ऐहिक तथा आयुष्मिक सुखों को देने वाले चार कुम्भ पर्वों का निर्माण कर चार स्थानों हरिद्वार, प्रयाग, उज्जैन और नासिक में प्रदान करता हूं।
कुम्भीका दूषीकाः पीचकान्। (अथर्ववेद)
वस्तुतः वेदों में वर्णित महाकुम्भ की यह सनातनता ही हमारी संस्कृति से जुड़ा अमृत महापर्व है जो आकाश में ग्रह-राशि आदि के संयोग से ……………………….. की अवधि में उज्जैन में शिप्रा के किनारे मनाया जा रहा है।
माधवे धवले पक्षे सिंह जीवत्वेजे खौ।
तुलाराशि निशानाथे स्वातिभे पूर्णिमा तिथौ।
व्यतीपाते तु सम्प्राप्ते चन्द्रवासर-संचुते।
कुशस्थली-महाक्षेत्रे स्नाने मोक्षमवाच्युयात्।
अर्थात् जब वैशाख मास हो, शुक्ल पक्ष हो और बृहस्पति सिंह राशि पर, सूर्य मेष राशि पर तथा चन्द्रमा तुला राशि पर हो, साथ ही स्वाति नक्षत्र, पूर्णिमा तिथि व्यतीपात योग और सोमवार का दिन हो तो उज्जैन में शिप्रा स्नान करने से मोक्ष की प्राप्ति होती है। विष्णु पुराण में कुम्भ के महात्म्य के संबंध में लिखा है कि कार्तिक मास के एक सहस्र स्नानों का, माघ के सौ स्नानों का अथवा वैशाख मास के एक करोड़ नर्मदा स्नानों का जो फल प्राप्त होता है, वही फल कुम्भ पर्व के एक स्नान से प्राप्त हो जाता है। इसी प्रकार एक सहस्र अश्वमेघ यज्ञों का फल या सौ वाजपेय यज्ञोें का फल अथवा सम्पूर्ण पृथ्वी की एक लाख परिक्रमाएं करने का जो फल होता है, वही फल कुम्भ के केवल एक स्नान का होता है।

उज्जैन की कुछ पुरानी दुर्लभ फोटो


उज्जैन महांकाल की कुछ पुरानी दुर्लभ फोटो


उज्जैन की कुछ पुरानी दुर्लभ फोटो


उज्जैन की कुछ पुरानी दुर्लभ फोटो


उज्जैन की कुछ पुरानी दुर्लभ फोटो


उज्जैन की कुछ पुरानी दुर्लभ फोटो


Sunday 10 May 2015

हस्तरेखा का महत्व

हस्तरेखा के माध्यम से हथेली
की रेखाओं, हाथ तथा
उंगलियों की बनावट का
अध्ययन करके मालूम हो सकता
है कि व्यक्ति अपने जीवन में
कौन-कौन से काम कर सकता
है। यहां जानिए हस्तरेखा के
कुछ ऐसे योग, जिनसे मालूम हो
जाता है कि कोई व्यक्ति इंजीनियर या जहाज चालक बन
सकता है या नहीं...
1. जिस व्यक्ति की उंगलियां मोटी और नुकीली हो अंगूठा
छोटा, हथेली चौड़ी हो और ग्रहों के पर्वत चपटे हों तो
व्यक्ति मेकेनिकल इंजीनियर बन सकता है।
2. जिस व्यक्ति की उंगलियां चपटी, पतली और गोल होती
है। चंद्र पर्वत उच्च होता है एवं ऊपर बताए गए लक्षण भी हों
तो व्यक्ति विद्युत या किसी अन्य कम्पनी में इंजीनियर बन
सकता है।
3. जिस व्यक्ति के हाथ की सोम रेखा, आयु रेखा से मिल
रही हो एवं बुध, गुरु पर्वत उठे हुए हों, हृदय रेखा स्वच्छ हो तो
व्यक्ति के समुद्री जहाज चालक बनने की संभावनाएं रहती
हैं।
4. जिस व्यक्ति के हाथों की चारो उंगलियों के पर्वत चौड़े
हों, सूर्य पर्वत के नीचे मुद्रा का चिह्न हो तो व्यक्ति
वायुयान का चालक बन सकता है।
5. जिस व्यक्ति के हाथ में चंद्र पर्वत उच्च हो, वह नाविक
हो सकता है।
6. जिस व्यक्ति की मस्तक रेखा मंगल पर्वत पर जाए और मंगल
पर्वत उच्च हो, वह समुद्र सैनिक (सैलर) होता है।

Friday 24 April 2015

केदारनाथ यात्राः क्‍या आप जानते हैं धाम का यह रहस्य?

द्वादश ज्योतिर्लिगों में से एक है केदारनाथ
आस्‍था का प्रतिक केदारनाथ धाम अपने आप में चमत्कार है। जून 2013 की आपदा में सबकुछ नष्ट हो गया है। लेकिन मंदिर को नुकसान तक नहीं पहुंचा।

इस मंदिर के इतिहास में कुछ ऐसे रहस्य छिपे हैं जिन्हें बहुत कम लोग जानते हैं। केदारनाथ मंदिर के कपाट खुलने पर आज अमर उजाला आपकों इन रहस्यों से रूबरू करवा रहा है। इतना ही नहीं काठमांडू के पशुपतिनाथ और केदारनाथ का आपस गहरा संबंध है।

श्री केदारनाथ द्वादश ज्योतिर्लिगों में से एक माना जाता है। यह ज्योतिर्लिंग त्रिकोण आकार का है और इसकी स्थापना के बारे में कहा जाता है कि हिमालय के केदार श्रृंग पर भगवान विष्णु के अवतार महातपस्वी नर और नारायण ऋषि तपस्या करते थे।

उनकी आराधना से प्रसन्न होकर भगवान शंकर प्रकट हुए और उनके प्रार्थनानुसार ज्योतिर्लिंग के रूप में सदा वास करने का वर प्रदान किया। यह स्थल केदारनाथ पर्वतराज हिमालय के केदार नामक श्रृंग पर अवस्थित हैं।

केदारनाथ मंदिर के बारे में एक कथा यह भी है कि महाभारत के युद्ध में विजयी होने पर पांडव हत्या के पाप से मुक्ति पाना चाहते थे। इसके लिए वे भगवान शंकर का आशीर्वाद पाना चाहते थे, लेकिन भगवान शिव पांडवों से नाराज थे।

भगवान शंकर के दर्शन के लिए पांडव काशी गए, पर वे उन्हें वहां नहीं मिले। वे लोग उन्हें खोजते हुए हिमालय तक आ पहुंचे। भगवान शंकर पांडवों को दर्शन नहीं देना चाहते थे, इसलिए वे वहां से अंतध्र्यान हो कर केदार में जा बसे। दूसरी ओर, पांडव भी लगन के पक्के थे, वे उनका पीछा करते-करते केदार पहुंच ही गए।
पशुपतिनाथ और केदारनाथ का आपस में है संबंध
भगवान शंकर ने तब तक बैल का रूप धारण कर लिया और वे अन्य पशुओं में जा मिले। पांडवों को संदेह हो गया था। अत: भीम ने अपना विशाल रूप धारण कर दो पहाडों पर पैर फैला दिया।

अन्य सब गाय-बैल तो निकल गए, पर शंकर जी रूपी बैल पैर के नीचे से जाने को तैयार नहीं हुए। भीम बलपूर्वक इस बैल पर झपटे, लेकिन बैल भूमि में अंर्तध्यान होने लगा। तब भीम ने बैल कापीठ का भाग पकड़ लिया।

भगवान शंकर पांडवों की भक्ति, दृढ संकल्प देख कर प्रसन्न हो गए। उन्होंने तत्काल दर्शन देकर पांडवों को पाप मुक्त कर दिया। उसी समय से भगवान शंकर बैल की पीठ की आकृति-पिंड के रूप में श्री केदारनाथ में पूजे जाते हैं।

ऐसा माना जाता है कि जब भगवान शंकर बैल के रूप में अंतर्ध्यान हुए, तो उनके धड़ से ऊपर का भाग काठमाण्डू में प्रकट हुआ। अब वहां पशुपतिनाथ का प्रसिद्ध मंदिर है। शिव की भुजाएं तुंगनाथ में, मुख रुद्रनाथ में, नाभि मदमदेश्वर में और जटा कल्पेश्वर में प्रकट हुए।

इसलिए इन चार स्थानों सहित श्री केदारनाथ को पंचकेदार कहा जाता है। यहां शिवजी के भव्य मंदिर बने हुए हैं।
ऐसे होती है भगवान केदार की पूजा
यह मन्दिर एक छह फीट ऊंचे चौकोर चबूतरे पर बना हुआ है। मन्दिर में मुख्य भाग मंडप और गर्भगृह के चारों ओर प्रदक्षिणा पथ है। बाहर प्रांगण में नंदी बैल वाहन के रूप में विराजमान हैं। मन्दिर का निर्माण किसने कराया, इसका कोई प्रामाणिक उल्लेख नहीं मिलता है, लेकिन ऐसा कहा जाता है कि इसकी स्थापना आदि गुरु शंकराचार्य ने की थी।

मन्दिर की पूजा श्री केदारनाथ द्वादश ज्योतिर्लिगों में से एक माना जाता है। प्रात:काल में शिव-पिण्ड को प्राकृतिक रूप से स्नान कराकर उस पर घी-लेपन किया जाता है। तत्पश्चात धूप-दीप जलाकर आरती उतारी जाती है।

इस समय यात्री-गण मंदिर में प्रवेश कर पूजन कर सकते हैं, लेकिन संध्या के समय भगवान का श्रृंगार किया जाता है। उन्हें विविध प्रकार से सजाया जाता है। भक्तगण दूर से केवल इसका दर्शन ही कर सकते हैं। केदारनाथ के पुजारी मैसूर के जंगम ब्राह्मण ही होते हैं।

केदारनाथ की बड़ी महिमा है। उत्तराखण्ड में बद्रीनाथ और केदारनाथ-ये दो प्रधान तीर्थ हैं, दोनो के दर्शनों का बड़ा महत्व है। कहा जाता है कि जो व्यक्ति केदारनाथ के दर्शन किये बिना बद्रीनाथ की यात्रा करता है, उसकी यात्रा निष्फल जाती है और केदारनापथ सहित नर-नारायण-मूर्ति के दर्शन का फल समस्त पापों के नाश पूर्वक जीवन मुक्ति की प्राप्ति बतलाया गया है।