Saturday 7 March 2015

महाँकाल बाबा के अवतार

महाकाल बाबा के अवतार मानव जीवन के लिए कितने
महत्वपूर्ण है आईये आप और हम मिलकर सीखें शिव अवतारों से
लाइफ मैनेजमेंट के गुण !!!
भगवान शिव ने अनेक अवतार लिए हैं। शिवपुराण तथा कुछ
अन्य ग्रंथों में इन अवतारों का वर्णन मिलता है।
महाशिवरात्रि (17 फरवरी, मंगलवार) के अवसर पर हम
आपको भगवान शिव के उन अवतारों तथा उनसे जुड़े लाइफ
मैनेजमेंट के बारे में बता रहे हैं-
1- वीरभद्र अवतार
भगवान शिव का विवाह ब्रह्मा के पुत्र दक्ष
की पुत्री सती से हुआ था। एक बार दक्ष ने विशाल यज्ञ
का आयोजन किया, लेकिन उन्होंने शिव व
सती को निमंत्रित नहीं किया। भगवान शिव के मना करने
के बाद भी सती इस यज्ञ में आईं और जब उन्होंने यज्ञ में अपने
पति शिव का अपमान होते देखा तो यज्ञवेदी में कूदकर
उन्होंने अपनी देह का त्याग कर दिया। भगवान शिव को जब
यह पता चला तो उन्होंने क्रोध में अपने सिर से एक
जटा उखाड़ी और उसे पर्वत के ऊपर पटक दिया। उस जटा के
पूर्वभाग से महाभंयकर वीरभद्र प्रगट हुए-
शिव के इस अवतार ने दक्ष के यज्ञ का विध्वंस कर दिया और
दक्ष का सिर काटकर उसे मृत्युदंड दिया। बाद में देवताओं के
अनुरोध करने पर भगवान शिव ने दक्ष के सिर पर बकरे के मुंह
लगाकर उसे पुन: जीवित कर दिया।
क्या सीखें-
वीर का अर्थ होता है पराक्रमी और भद्र का अर्थ है सभ्य।
भगवान शिव का यह अवतार हमें बताता है कि अगर आप वीर
है, आप में शक्ति है तो आप इस शक्ति का उपयोग बुराई
को खत्म करने में करें। कभी भी अपनी शक्ति का दुरुपयोग न
करें।
शक्ति के अहंकार में आकर कभी किसी के साथ अभद्र
व्यवहार न करें। सदैव भद्र यानी सभ्य बने रहें। सभ्य
वीरों का काम होता है हमेशा धर्म के पथ पर
चलना तथा नि:सहायों की सहायता करना। जबकि असभ्य
वीर वर्ग सदैव अधर्म के मार्ग पर चलते हैं
तथा नि:शक्तों को परेशान करते हैं।
2- पिप्पलाद अवतार
पुराणों के अनुसार भगवान शंकर ने अपने परम भक्त
दधीचि मुनि के यहां पुत्र रूप में जन्म लिया। पिप्पलाद
मुनि का जन्म पीपल के वृक्ष के नीचे हुआ। पीपल के नीचे
ही तप किया और पीपल के पत्तों को ही भोजन के रूप में
ग्रहण किया इसलिए शिव के इस इस अवतार का नाम
पिप्पलाद पड़ा। शिवपुराण के अनुसार स्वयं ब्रह्मा ने
ही शिव के इस अवतार का नामकरण किया था-
क्या सीखें-
भगवान शंकर के पिप्पलाद अवतार से हमें प्रकृति से प्रेम करने
की सीख मिलती है। शिव प्रकृति के देवता हैं।
मुनि पिप्पलाद का जन्म, तप आदि पीपल के वृक्ष के नीच
ही हुआ। इससे हमें प्रेरणा मिलती है कि हमें प्रकृति से
जुड़ा रहना चाहिए। वैज्ञानिक दृष्टिकोण को देखा जाए
तो पीपल एकमात्र पेड़ है जो हर समय प्राण वायु
(ऑक्सीजन) छोड़ता है। हमारे धर्मग्रंथों में पीपल
को पूजनीय तथा साक्षात शिव का स्वरूप माना है।
3- अर्धनारीश्वर अवतार
शिवपुराण के अनुसार सृष्टि में प्रजा की वृद्धि न होने पर
ब्रह्मा चिंतित हो उठे। तभी आकाशवाणी हुई- ब्रह्म!
मैथुनी सृष्टि उत्पन्न कीजिए। यह सुनकर ब्रह्माजी ने
मैथुनी सृष्टि उत्पन्न करने का संकल्प किया। परंतु तब तक शिव
से नारियों का कुल उत्पन्न नहीं हुआ था। तब ब्रह्मा ने
शक्ति के साथ शिव को संतुष्ट करने के लिए तपस्या की ।
ब्रह्मा की तपस्या से परमात्मा शिव संतुष्ट
हो 'अर्धनारीश्वर का रूप धारण कर उनके समीप गए और अपने
शरीर में स्थित देवी शिवा/शक्ति के अंश को पृथक कर
दिया। इसी के बाद सृष्टि का विस्तार हुआ।
क्या सीखें-
भगवान शंकर का यह अवतार हमें बताता है कि समाज,
परिवार व सृष्टि के संचालन में पुरुष
की भूमिका जितनी महत्वपूर्ण है,
उतनी ही स्त्री की भी है। स्त्री तथा पुरुष एक-दूसरे के पूरक
हैं। एक-दूसरे के बिना इनका जीवन निरर्थक है। अर्धनारीश्वर
लेकर भगवान ने यह संदेश दिया है कि समाज तथा परिवार में
महिलाओं को भी पुरुषों के समान ही आदर व
प्रतिष्ठा मिले। उनके साथ किसी प्रकार का भेदभाव न
किया जाए।
4- नंदी अवतार
शिवपुराण के अनुसार शिलाद मुनि ब्रह्मचारी थे। वंश
समाप्त होता देख उनके पितरों ने शिलाद से संतान उत्पन्न
करने को कहा। शिलाद ने अयोनिज और मृत्युहीन संतान
की कामना से भगवान शिव की तपस्या की। तब भगवान
शंकर ने स्वयं शिलाद के यहां पुत्र रूप में जन्म लेने का वरदान
दिया। कुछ समय बाद भूमि जोतते समय शिलाद को भूमि से
उत्पन्न एक बालक मिला। शिलाद ने उसका नाम नंदी रखा।
भगवान शंकर ने नंदी को अपना गणाध्यक्ष बनाया। इस तरह
नंदी नंदीश्वर हो गए। मरुतों की पुत्री सुयशा के साथ
नंदी का विवाह हुआ।
क्या सीखें-
भगवान शिव का नंदीश्वर अवतार हमें पशुओं से प्रेम करने
की सीख देता है। नंदीश्वर का स्वरूप पशु के समान था। फिर
भी भगवान शंकर ने इस रूप में स्वयं को प्रदर्शित
किया तथा बाद में अपने गणों में सम्मिलित भी किया। यह
अवतार प्रकृति के सभी जीवों में समानता का भाव
प्रदर्शित करता है। सभी जीवों के सामंजस्य से
ही प्रकृति का संतुलन बना रह सकता है, यह सिखाता है
शिव का नंदीश्वर अवतार।
5- भैरव अवतार
एक बार भगवान शंकर की माया से प्रभावित होकर
ब्रह्मा व विष्णु स्वयं को श्रेष्ठ मानने लगे। तभी वहां भगवान
शिव भैरव रूप में प्रकट हुए। उन्हें देखकर ब्रह्माजी ने कहा-
चंद्रशेखर तुम मेरे पुत्र हो। अत: मेरी शरण में आओ।
ब्रह्मा की ऐसी बात सुनकर भैरव को क्रोध आ गया और
उन्होंने अपनी उंगली के नाखून से ब्रह्मा के पांचवे सिर
को काट दिया। ब्रह्मा का पांचवां सिर काटने के कारण
भैरव ब्रह्महत्या के पाप से दोषी हो गए। काशी में भैरव
को ब्रह्महत्या के पाप से मुक्ति मिली।
क्या सीखें-
भगवान शंकर के इस अवतार से हमें
अवगुणों को त्यागना सीखना चाहिए। भैरव के बारे में
प्रचलित है कि ये अति क्रोधी, तामसिक गुणों वाले
तथा मदिरा का सेवन करने वाले हैं। इस अवतार का मूल
उद्देश्य है कि मनुष्य अपने सारे अवगुण जैसे- मदिरापान,
तामसिक भोजन, क्रोधी स्वभाव आदि भैरव को समर्पित
कर पूर्णत: धर्ममय आचरण करें। भैरव अवतार से हमें यह
भी शिक्षा मिलती है कि हर कार्य सोच-विचार कर
करना ही ठीक रहता है। बिना विचारे कार्य करने से पद व
प्रतिष्ठा धूमिल होती है।

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