Sunday 15 March 2015

उज्जैन दर्शन


उज्जैन दर्शन
उज्जैन का गौरव: महाकालेश्वर मंदिर उज्जैन के
महाकालेश्वर की मान्यता भारत के प्रमुख बारह
ज्योतिर्लिंगों में है। महाकालेश्वर मंदिर
का माहात्म्य विभिन्न पुराणों में विस्तृत रूप से
वर्णित है। महाकवि तुलसीदास से लेकर संस्कृत
साहित्य के अनेक प्रसिध्द कवियों ने इस मंदिर
का वर्णन किया है। लोक मानस में महाकाल
की परम्परा अनादि है। उज्जैन भारत
की कालगणना का केंद्र बिन्दु था और महाकाल
उज्जैन के अधिपति आदि देव माने जाते हैं। थी
इतिहास के प्रत्येक युग में-शुंग,कुशाण, सात वाहन,
गुप्त, परिहार तथा अपेक्षाकृत आधुनिक
मराठा काल में इस मंदिर का निरंतर जीर्णोध्दार
होता रहा है। वर्तमान मंदिर का पुनर्निर्माण
राणोजी सिंधिया के काल में मालवा के सूबेदार
रामचंद्र बाबा शेणवी द्वारा कराया गया था।
वर्तमान में भी जीर्णोध्दार एवं सुविधा विस्तार
का कार्य होता रहा है। महाकालेश्वर
की प्रतिमा दक्षिणमुखी है। तांत्रिक परम्परा में
प्रसिध्द दक्षिण मुखी पूजा का महत्व बारह
ज्योतिर्लिंगों में केवल महाकालेश्वर को ही प्राप्त
है। ओंकारेश्वर में मंदिर की ऊपरी पीठ पर महाकाल
मूर्ति कीतरह इस तरह मंदिर में भी ओंकारेश्वर
शिव की प्रतिष्ठा है। तीसरे खण्ड में नागचंद्रेश्वर
की प्रतिमा के दर्शन केवल नागपंचमी को होते है।
विक्रमादित्य और भोज की महाकाल पूजा के लिए
शासकीय सनदें महाकाल मंदिर को प्राप्त
होती रही है। वर्तमान में यह मंदिर महाकाल मंदिर
समिति के तत्वावधान में संरक्षित है।
श्री बडे गणेश मंदिर
श्री महाकालेश्वर मंदिर के निकट हरसिध्दि मार्ग
पर बडे गणेश की भव्य और कलापूर्ण
मूर्ति प्रतिष्ठित है। इस मूर्ति का निर्माण पद्
मविभूषण पं. सूर्यनारायण व्यास के पिता विख्यात
विद्वान स्व. पं. नारायण जी व्यास ने किया था।
मंदिर परिसर में सप्तधातु की पंचमुखी हनुमान
प्रतिमा के साथ-साथ नवग्रह मंदिर तथा कृष्ण
यशोदा आदि की प्रतिमाएं भी विराजित हैं।
मंगलनाथ मंदिर
पुराणों के अनुसार उज्जैन नगरी को मंगल
की जननी कहा जाता है। ऐसे
व्यक्ति जिनकी कुंडली में मंगल भारी रहता है, वे
अपने अनिष्ट ग्रहों की शांति के लिए यहाँ पूजा-
पाठ करवाने आते हैं। यूँ तो देश में मंगल भगवान के
कई मंदिर हैं, लेकिन उज्जैन इनका जन्मस्थान होने
के कारण यहाँ की पूजा को खास महत्व
दिया जाता है।कहा जाता है कि यह मंदिर
सदियों पुराना है। सिंधिया राजघराने में
इसका पुनर्निर्माण करवाया गया था। उज्जैन शहर
को भगवान महाकाल की नगरी कहा जाता है,
इसलिए यहाँ मंगलनाथ भगवान
की शिवरूपी प्रतिमा का पूजन किया जाता है। हर
मंगलवार के दिन इस मंदिर में श्रद्धालुओं
का ताँता लगा रहता है।
हरसिध्दि
उज्जैन नगर के प्राचीन और महत्वपूर्ण धार्मिक
स्थलों में हरसिध्दि देवी का मंदिर प्रमुख है।
चिन्तामण गणेश मंदिर से थोडी दूर और रूद्रसागर
तालाब के किनारे स्थित इस मंदिर में सम्राट
विक्रमादित्य
द्वारा हरसिध्दि देवी की पूजा की जाती थी।
हरसिध्दि देवी वैष्णव संप्रदाय की आराध्य रही।
शिवपुराण के अनुसार दक्ष यज्ञ के बाद
सती की कोहनी यहां गिरी थी।
क्षिप्रा घाट
उज्जैन नगर के धार्मिक स्वरूप में क्षिप्रा नदी के
घाटों का प्रमुख स्थान है। नदी के दाहिने किनारे,
जहां नगर स्थित है, पर बने ये घाट
स्थानार्थियों के लिये सीढीबध्द हैं। घाटों पर
विभिन्न देवी-देवताओं के नये-पुराने मंदिर भी है।
क्षिप्रा के इन घाटों का गौरव सिंहस्थ के दौरान
देखते ही बनता है, जब लाखों-करोडों श्रध्दालु
यहां स्नान करते हैं।
गोपाल मंदिर
गोपाल मंदिर उज्जैन नगर का दूसरा सबसे
बडा मंदिर है।यह मंदिर नगर के मध्य व्यस्ततम
क्षेत्र में स्थित है। मंदिर का निर्माण
महाराजा दौलतराव सिंधिया की महारानी बायजा बाई
ने सन् 1833 के आसपास कराया था। मंदिर में
कृष्ण (गोपाल) प्रतिमा है। मंदिर के चांदी के द्वार
यहां का एक अन्य आकर्षण हैं।
गढकालिका देवी
गढकालिका देवी का यह मंदिर आज के उज्जैन नगर
में प्राचीन अवंतिका नगरी क्षेत्र में है।
कालयजी कवि कालिदास गढकालिका देवी के
उपासक थे। इस प्राचीन मंदिर का सम्राट
हर्षवर्धन द्वारा जीर्णोध्दार कराने का उल्लैख
मिलता है।गढ़ कालिका के मंदिर में माँ कालिका के
दर्शन के लिए रोज हजारों भक्तों की भीड़
जुटती है। तांत्रिकों की देवी कालिका के इस
चमत्कारिक मंदिर की प्राचीनता के विषय में कोई
नहीं जानता, फिर भी माना जाता है
कि इसकी स्थापना महाभारतकाल में हुई थी, लेकिन
मूर्ति सतयुग के काल की है। बाद में इस प्राचीन
मंदिर का जीर्णोद्धार सम्राट हर्षवर्धन
द्वारा किए जाने का उल्लेख मिलता है। स्टेटकाल
में ग्वालियर के महाराजा ने इसका पुनर्निर्माण
कराया।
भर्तृहरि गुफा
भर्तृहरि की गुफा ग्यारहवीं सदी के एक मंदिर
का अवशेष है, जिसका उत्तरवर्ती दोर में
जीर्णोध्दार होता रहा ।
काल भैरव
काल भैरव मंदिर आज के उज्जैन नगर में स्थित
प्राचीन अवंतिका नगरी के क्षेत्र में स्थित है। यह
स्थल शिव के उपासकों के कापालिक सम्प्रदाय से
संबंधित है। मंदिर के अंदर काल भैरव की विशाल
प्रतिमा है।

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