Monday 16 February 2015

आइये पहचाने शिव के प्रतीक और उनका गहन रहस्य:l

महाशिवरात्रि का पावन पर्व:-
शिवरात्रि फाल्गुन कृष्ण पक्ष चतुर्दशी को आती है।शिव जी इस चतुर्दशी के स्वामी है।इस दिन चन्द्रमा सूर्य के अत्यधिक निकट होता है।समस्त भूतों का अस्तित्व मिटाकर परमात्मा(शिव) सेआत्मइसाधन करने की रात शिवरात्रि है।
हमारी समझ से इस दिन जीव रूपी चंद्रमा का परमात्मरूपी सूर्य के साथ संयोग रहता है इसी कारण इस रात्रि को हमारे शास्त्रो में जागरण का महत्व बताया गया है।शिव की हर बात निराली और रहस्यमय है।उनका सारा क्रियाकलाप बिरोधाभासो का भण्डार है।
ऋग्वेद के रात्रि सूक्त में रात्रि को नित्य प्रलय और दिन को नित्य सृष्टि कहा गया है।दिन में हमारा मन और हमारी इन्द्रिया भीतर से बाहर निकलकर प्रपंच की ओर दौङ्ती है और रात्रि में फिर बाहर से भीतर जाकर शिव की ओर प्रवृत हो जाती है।इसीलिए दिन सृष्टि का और रात प्रलय का धोतक है।

आइये पहचाने शिव के प्रतीक और उनका गहन रहस्य:::----

वृषभ::--जो शिव का वाहन है,वह हमेशा शिव के साथ है। वृषभ का अर्थ धर्म है।मनुस्मृति के अनुसार वृषो हि भगवान धर्मः।व् वेद ने धर्म को चार पैरो वाला प्राणी कहा है।जो धर्म,अर्थ,काम,मोक्ष की ओर इंकित करता है।ये सभी महादेव के अधीन है।अथर्ववेद में वृषभ को पृथ्वी का धारक,पोषक,उत्पादक आदि व् मेघ से भी लिया गया है।

2- शिव की जटा :-शिव अंतरिक्ष के देवता है। उनका एक नाम ब्योमकेश भी है।अतः आकाश उनकी जटा स्वरूप् है।जताए वायुमण्डल की प्रतीक है। वायु आकाश में ब्याप्त है।सूर्य मण्डल के ऊपर परमेष्ठी मण्डल है।इसके अर्थ तत्व को गंगा की संज्ञा दी गयी है।व् गंगा शिव की जटा में प्रवाहित है।

3 -त्रिनेत्र ::-शिव को त्रिलोचन कहते है यानि उनकी तीन आखे है। वेदानुसार सूर्य और चन्द्र विराट पुरुष के नेत्र है। अग्नि शिव का तीसरा नेत्र है,जो यज्ञाग्नि का प्रतीक है।यह तीन नेत्र तीन गुण सत्व,रज,तम व् तीन काल -वर्तमान,भुत,भविष्य तथा तीन लोको-स्वर्ग,मृत्यु पाताल का प्रतीक है।इसी कारण शिव को त्र्यम्बक भी कहते है।

4-सर्पो का हार :-भगवान शंकर के गले और शरीर पर सर्पो का हार है। सर्प तमोगुणी है और संहारक वृत्ति का जीव है।अर्थात शिव ने तमोगुण को अपने वश में कर रखा है।समझ लो सर्प जैसा क्रूर और हिंसक जीव महाकाल के अधीन है।

5-त्रिशूल :-शिव के हाथो में एक मारक शस्त्र त्रिशूल है।सृष्टि में मानव मात्र आधिभौतिक,आधिदैविक,आध्यात्मिक इन तीनो तापो से त्रस्त रहता है।शिव का त्रिशूल इन तापो को नष्ट करता है।शिव का त्रिशूल इच्छा ,ज्ञान और क्रिया का सूचक है।

6-डमरू :- तांडव नृत्य के समय शिव बजाते है डमरू।पुरुष और प्रकृति के मिलन का नाम ही तांडव नृत्य है।उस समय अणु-अणु में क्रियाशीलता जागृत होती हैऔर सृष्टि का निर्माण होता है।अणुओ के मिलन और सघर्ष से शब्द का जन्म होता है शास्त्रों में शब्द को ब्रह्म कहा गया है।डमरू का शब्द या नाद ही ब्रह्म रूप है।वही ओंकार का ब्यंजक है।

7 -गंगा और चंद्रमा :-इस उग्रता का निवास मस्तिष्क में है।इसीलिए शांति की प्रतीक गंगा और अर्द्धचंद्र शिव के मस्तक पर विराजमान होकर उनकी उग्रवृत्ति को शांत व् शीतल रखते है।चंद्रमा का एक नाम सोम है जो शांति का प्रतीक है इसी हेतु सोमवार को शिवपूजन,दर्शन,व् उपासना का विशेष महत्व है।

8 -मुण्डमाला ::-शिव के गले में मुण्डमाला से यह भाव ब्यक्त होता है की उन्होंने मृत्यु को गले लगा रखा है तथा वे उससे भयभीत नही है।शिव के श्मशानवास का प्रतीक यह है की जो जन्मता है एक दिन अवश्य मरता है अतः जीवित अवस्था में शरीर नाश का बोध होना ही चाहिए।

9 -हस्ति चर्म और ब्याघ्र चर्म ::-शिव की देह पर हस्ति चर्म और ब्याघ्र चर्म को धारण करने की कल्पना की गई है। हाथी अभिमान का और ब्याघ्र हिंसा का प्रतीक है अतः शिव जी ने अहंकार और हिंसा दोनों को दबा रखा है।

10-भस्म ::-भस्म जगत की निस्सारता का बोध कराती है।प्रलय के समय समस्त जगत का विनाश हो जाता है,केवल भस्म(राख)शेष रह जाती है।यही दशा शरीर की भी होती है।भस्म से नश्वरता का स्मरण होता है। वेद में रूद्र को अग्नि का प्रतीक माना गया है।अग्नि का कार्य भस्म करना है अतः भस्म को शिव का श्रृंगार माना गया है।

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